अद्भुत संघर्ष की कहानी
deafblind woman government job india: इंदौर की गुरदीप कौर वासु, जो न देख सकती हैं, न सुन सकती हैं और न ही बोल सकती हैं, ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है जो लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन गया है। बहु-दिव्यांग होते हुए भी उन्होंने प्रधानमंत्री दिव्यांगजन योजना के अंतर्गत वाणिज्यिक कर विभाग (जीएसटी) में चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरी हासिल की है। उनका सफर संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
मुंबई से इंदौर तक का सफर
गुरदीप की शिक्षा की शुरुआत मुंबई के ‘हेलेन केयर’ संस्थान से हुई थी। पिछले आठ वर्षों से वे इंदौर में विशेष शिक्षकों ज्ञानेंद्र और मोनिका पुरोहित की देखरेख में पढ़ाई और प्रशिक्षण ले रही थीं। इन शिक्षकों ने उन्हें विशेष भाषा और जीवन कौशल सिखाए, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकीं।
टैक्टाइल साइन लैंग्वेज बनी संवाद का माध्यम
गुरदीप संवाद के लिए ‘टैक्टाइल साइन लैंग्वेज’ का उपयोग करती हैं, जिसमें वे सामने वाले के हाथों और उंगलियों को छूकर अपनी बात समझती और समझाती हैं। यह भाषा विशेष रूप से उन लोगों के लिए होती है जो दृष्टिहीन, मूक और बधिर होते हैं, और यह एक अनूठा माध्यम है जिससे गुरदीप ने अपनी दुनिया बनाई।
बचपन से संघर्ष, अब सफलता की उड़ान
गुरदीप का जन्म समय से पूर्व हुआ था और शुरुआती दिनों में ही यह साफ हो गया था कि वे देख, सुन और बोल नहीं सकतीं। उनके माता-पिता प्रीतपाल सिंह वासु और मनजीत कौर ने हर कदम पर उनका साथ दिया। तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी को सामान्य जीवन देने की कोशिश की और आज उनकी मेहनत रंग लाई है।
पहले दिन की चमकती मुस्कान: deafblind woman government job india
सरकारी सेवा में गुरदीप का पहला दिन बेहद खास था। आत्मविश्वास से भरा चेहरा, पूरे समाज को एक मजबूत संदेश दे रहा था कि दिव्यांगता कोई रुकावट नहीं है। गुरदीप की सफलता एक उदाहरण है कि अगर मन में विश्वास हो तो कोई भी मंज़िल असंभव नहीं।
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