
बीमारी से छुटकारा और उम्र बढ़ेगी
Yogini Ekadashi : स्कंद पुराण के अनुसार कहा जाता है कि जेठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस साल यह व्रत 2 जुलाई, मंगलवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है। योगिनी एकादशी व्रत के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने का भी विशेष महत्व है।
Yogini Ekadashi : जरूरतमंदों को दान करें
इस दिन स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति को गंगाजल से स्नान, चंदन, नादाछारी, धूप, दीप, फूल से पूजा और आरती करें। पूजा के बाद जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को दान करें। अगले दिन, पूजा आदि के बाद ही व्रत खोलें। मान्यता है कि इस व्रत को करने से 88 हजार ब्राह्मणों भोजन कराने जितना पुण्य प्राप्त होता है।
मन को स्थिर और शांत रखें
Yogini Ekadashi: एकादशी का व्रत करने वाले उपासक को अपने मन को स्थिर और शांत रखना चाहिए। मन में किसी भी प्रकार का अपराधबोध या क्रोध न रखें। अन्य लोगों की निंदा न करें। इस एकादशी पर पवित्र आत्मा से श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा करें। भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाएं।
अब जान लीजिए इस व्रत को करने का विधान
Yogini Ekadashi :प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि से निव्रत होकर घर के मंदिर में दीपक जलाएं। पूजा घर को स्वच्छ करें और भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें। भगवान विष्णु को फूल और तुलसी की दाल अर्पित करें। इस दिन व्रत रखें और केवल फलाहार ही करें। भगवान विष्णु के यज्ञ में तुलसी को शामिल करें। इस शुभ दिन भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करें। भगवान की पूजा करें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक दान-पुण्य और ध्यान करें।
पौराणिक कथा
Yogini Ekadashi : व्रत के बारे में एक कथा है कि अलकापुरी के राजा कुबेर शिव के भक्त थे। हेम माली नाम का एक यक्ष इनका सेवक था, जो कुबेर की शिव पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली एक बार अपनी पत्नी के साथ समय बिताते हुए पूजा के लिए फूल लाना भूल गए थे। इससे निराश होकर कुबेर ने माली को श्राप दे दिया कि वह स्त्री की मृत्यु और मृत्यु के पास जाकर कुष्ठ रोगी बन जाए।
कुबेर के श्राप ने उन्हें कुष्ठ नाम का त्वचा रोगी बना दिया और उनकी पत्नी भी उनसे दूर होती चली गई। एक बार वह ऋषि मार्कंडेय से मिले। ऋषि ने उन्हें बताया कि जेठ मास के वाध पक्ष की एकादशी का व्रत करने से सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। महर्षि का वचन सुनकर हेममाली ने एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह अपने पुराने रूप में लौट आए और उनका रोग भी दूर हो गया और वे पुनः अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने लगे।
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