Nata Pratha: बिना शादी के लड़का लड़की एक दूसरे के साथ रहते है। लेकिन इसे लिवइन नहीं कहा जाता, क्योंकि इसमें घर वालों के साथ-साथ समाज की भी मंजूरी होती है। लड़का या लड़की अगर शादीशुदा भी है, तो भी वो अपने पुराने रिश्तों को छोड़कर समाज की मंजूरी से एक दूसरे के साथ पति-पत्नी बनकर रह सकते है। इतना ही नहीं इसे एक प्रथा का नाम दिया गया है। जिसे ‘नाता प्रथा’ कहते है।
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क्या है नाता प्रथा
Nata Pratha: राजस्थान में प्रचलित पुरानी प्रथाओं में एक है। राजस्थान की कुछ जातियों में पत्नी अपने पति को छोड़ कर किसी और पुरुष के साथ रह सकती है। इसे ‘नाता करना’ कहते हैं। इसमें कोई औपचारिक रीति रिवाज नहीं करना पड़ता। केवल आपसी सहमति होती है। विधवा औरतें भी नाता कर सकती हैं। इतना ही नहीं पुरुष भी किसी विवाहित महिला को उसकी सहमति से लाकर पत्नी के रूप में रख सकता है. इसे नाता विवाह भी कहते हैं।
Nata Pratha: बिना रस्मों की शादी
नाता विवाह ऐसी शादी होती है, जिसमें ना तो कोई रस्में होती है, और ना ही कोई फेरे। बिना किसी रस्मों रिवाज के कोई भी विवाहित पुरुष या महिला अगर किसी अपनी मर्जी से किसी और के साथ रहना चाहते है, तो वे एक दूसरे से तलाक लेकर एक निश्चित राशि अदा कर एक साथ रह सकते हैं. इस प्रथा की वजह से वहां के लोगों को तलाक के कानूनी झंझटों से मुक्ति मिल जाती है. और अपनी पसंद का जीवन साथी भी।
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नाता प्रथा का इतिहास
Nata Pratha: लेकिन इस प्रथा के इतिहास के बारे में बहुत लोग नहीं जानते। राजस्थान में आज भी कायम इस पुरानी परंपरा आज भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि नाता प्रथा विधवाओं और छोड़ी हुई औरतों के लिए शुरू हुई थी. उन्हें समाज में मान्यता देने के लिए इसकी शुरुआत की गई थी.
Nata Pratha: इस प्रथा में पांच गांव के पंचों द्वारा कुछ फैसले लिए जाते हैं….इस दौरान पहली शादी से जन्मे बच्चों को लेकर बात की जाती है… इसके साथ ही अन्य मुद्दों पर चर्चा कर उनका निपटारा किया जाता है।
लड़का देता है पैसा
Nata Pratha: इस प्रथा में जो पुरुष महिला को लेकर जा रहा है, उसे कुछ रकम चुकानी होती है। जो विवाहित महिला पक्ष मांगता है। सौदा तय होने के बाद ही पुरुष विवाहिता को अपने साथ रख सकता है। इस लेनदेन की जाने वाली राशि को ‘ झगड़ा छूटना’ कहते हैं ।
कौनसी जातियां करती है नाता विवाह ?
ये प्रथा हर जाति में नहीं निभाई जाती। इस प्रथा का चलन ब्राह्मण, राजपूतों और जैन को छोड़कर बाकी सभी जातियों में है; ख़ासकर गुर्जरों में तो यह परंपरा काफ़ी लोकप्रिय है।
Nata Pratha: अब वक्त साथ-साथ ‘नाता प्रथा’ का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। बाकी प्रथाओं की तरह इस प्रथा में भी कई चेंजेज हुए… जिसका इस्तेमाल अब औरतों की दलाली के रूप में हो रहा है। इसके जरिए कुछ पुरुष जबरदस्ती महिलाओं को दलालों के हाथों बेच देते हैं। इसके अलावा कई पुरुष इस प्रथा की आड़ में महिलाओं की अदला-बदली भी कर लेते हैं। पहले यह प्रथा केवल गांवों में मानी जाती थी, लेकिन आज राजस्थान के कई कस्बों तक फैल चुकी है। वहीं इस प्रथा से हो रहे सामाजिक नुकसान को रोकने के लिए पंचायतों के पास कोई भी आधिकारिक नियंत्रण नहीं है…इस वजह से आज ‘नाता प्रथा’ महिलाओं के शोषण का सबसे बड़ा हथियार बन कर सामने आ रही है।सरकार जितना जल्दी इस पर ध्यान दे उतना ही अच्छा होगा।