"निदा फा़ज़ली" -
हिंदुस्तान में आम आदमी का शायर
सोचने बैठे जब भी
उसको
अपनी ही तस्वीर
बना दी
सिखा देती है चलना ठोकरें भी राहगीरों को
कोई रास्ता सदा दुशवार हो ऐसा नहीं होता
फ़क़त चन्द लम्हे
न मैं अपने दु:ख-दर्द की बात छेड़ूँ
न तुम अपने घर की कहानी सुनाओ
मैं मौसम बनूँ
तुम फ़ज़ाएँ जगाओ
तुमने बेकार ही मौसम को सताया
वर्ना-फुल जब खिल के महक जाता है
ख़ुद-ब-ख़ुद शाख से गिर जाता है
कभी-कभी तो सफ़र ऐसे रास आते हैं
ज़रा सी देर में दो घंटे बीत जाते हैं
नाम उसका? दो नीली आँखें
ज़ात उसकी? रस्ते की रात
मज़हब उसका? भीगा मौसिम
पता? बहारों की बरसात!
छन-छन करती टीन की चादर
सन-सन बजते पात
पिंजरे का तोता दोहराता
रटी-रटाई बात
घास पर खेलता है इक बच्चा
पास माँ बैठी मुस्कुराती है
मुझ को हैरत है जाने क्यों
दुनिया काब-ओ-सोमनाथ जाती है।
काम तो हैं ज़मीं पर बहुत
आसमाँ पर खुदा किसलि
ए
एक ही थी सुकूँ की जगह
घर में ये आइना किसलिए