Vaishakh Amavasya: हिंदू पंचांग के अनुसार अभी वैशाख का महीना चल रहा है, और इस महिने की अमावस्या बेहद खास मानी जाती है। इस साल 8 मई, बुधवार को वैशाख अमावस्या मनाई जाएगी। इस अमावस्या पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
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वैशाख अमावस्या का महत्व
वैशाख अमावस्या के दिन स्नान-दान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण या कर्मकांड करने से बहुत पुण्य मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष दिन पर पूजा-पाठ करने से देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. शास्त्रों में अमावस्या तिथि से जुड़े कुछ उपाय का भी उल्लेख किया गया है, जिनका पालन करने से जीवन में आ रही समस्याओं से छुटकारा मिलता है और कई प्रकार के ग्रह दोष भी दूर हो जाते हैं।
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कब हैं वैशाख अमावस्या
Vaishakh Amavasya: वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 07 मई सुबह 11:40 पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 08 मई सुबह 08:51 पर होगा। हिंदू धर्म में व्रत और पूजा-पाठ के लिए उदया तिथि को महत्व दिया जाता है। ऐसे में वैशाख अमावस्या व्रत 08 मई 2024, बुधवार के दिन रखा जाएगा।
Vaishakh Amavasya: कैसे पाएं जीवन की समस्याओं से छुटकारा
शास्त्रों में अमावस्या तिथि से जुड़े कुछ उपायों का भी उल्लेख किया गया है, जिनका पालन करने से जीवन में आ रही समस्याओं से छुटकारा मिलता है, इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं,
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वैशाख अमावस्या 2024 शुभ योग
Vaishakh Amavasya: पंचांग में बताया गया है कि वैशाख अमावस्या के दिन सौभाग्य योग का निर्माण हो रहा है। जो शाम 05:41 तक रहेगा और इसके बाद शोभन योग शुरू हो जाएगा। इसके साथ इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का भी निर्माण योग जो दोपहर 01:33 से पूर्ण रात्रि तक रहेगा। साथ ही स्नान के लिए सुबह 04:31 से सुबह 05:35 और दान पुण्य करने के लिए दोपहर 02:32 से दोपहर 03:26 मिनट का समय अत्यंत शुभ रहेगा।
Vaishakh Amavasya: पौराणिक कथा
वैशाख अमावस्या की पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले धर्मवर्ण नाम के एक विप्र थे। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति के थे।
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Vaishakh Amavasya: एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि घोर कलियुग में भगवान श्री विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। जो पुण्य यज्ञ करने से प्राप्त होता था, उससे कहीं अधिक पुण्य फल नाम सुमिरन करने से मिल जाता है। धर्मवर्ण ने इसे आत्मसात कर सन्यास लेकर भ्रमण करने निकल गए। एक दिन भ्रमण करते-करते वह पितृलोक जा पंहुचे। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे।
पितरों ने उन्हें बताया कि उनकी ऐसी हालत धर्मवर्ण के सन्यास के कारण हुई है, क्योंकि अब उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है. साथ ही, वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही, वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। इसके बाद धर्मवर्ण ने संन्यासी जीवन छोड़कर वापस सांसारिक जीवन को अपनाया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने को मुक्ति दिलाई।