
Udaipur Royal Family: क्यों भिड़े महाराणा प्रताप के वंशज?
Udaipur Royal Family: मेवाड़ का चित्तौड़गढ़ किला…कभी इस किले को लेकर महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच जंग हुआ करती थी. अब ये जंग महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच हो रही है। लोकतंत्र के आने के बाद राजशाही तो खत्म हो गई, लेकिन परंपराएं अभी भी जिंदा हैं, उन्हीं परंपराओं ने महाराणा प्रताप के वंशजों को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया है।
कौन है मेवाड़ का असली उत्तराधिकारी?
चित्तौड़गढ़ किले और उदयपुर की रियासत का असली उत्तराधिकारी कौन है? इसको लेकर जंग छिड़ी हुई है। उदयपुर में राजपरिवार के बड़े बेटे और पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ 25 नवंबर को गद्दी पर बैठे। पगड़ी दस्तूर की ये रस्म चित्तौड़गढ़ के ‘फतह प्रकाश महल’ में निभाई गई। इस दौरान खून से उनका तिलक किया गया। साथ ही 21 तोपों की सलामी भी दी गई।
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Udaipur Royal Family: 77वें महाराणा बने विश्वराज सिंह मेवाड़
महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ के 77वें महाराणा बने। दूसरी तरफ, महेंद्र सिंह के छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने इस रस्म को “ग़ैरक़ानूनी” करार दिया है। जब राजतिलक के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ समर्थकों सिटी पैलेस स्थित धूणी माता के दर्शन करने पहुंचे।
दोनों पक्षों में हुई पत्थरबाजी!
सिटी पैलेस के पास पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रखी थी। इस वजह से पुलिस और विश्वराज सिंह मेवाड़ के समर्थकों के बीच जमकर नोकझोंक हुई। समर्थकों ने बैरिकेड तोड़कर पैलेस के अंदर जाने की कोशिश भी की. इस दौरान पुलिस ने हल्का बल प्रयोग भी किया गया. वहीं, दूसरे पक्ष के सर्मथक भी वहां आ गए और फिर दोनों पक्षों के बीच पत्थरबाजी हुई, और राजपरिवार की संपत्ति का विवाद सड़क तक पहुंच गया।
इस पत्थरबाजी में कई लोग घायल बताए जा रहे। लेकिन आखिर इतने बड़े राजघराने के वंशज आमने सामने क्यों आए है।
Udaipur Royal Family: क्या है पूरी कहानी?
कहानी शुरू होती है 1983 से..उदयपुर के आखिरी महाराणा भगवत सिंह ने 1963 से 1983 तक राजघराने की कई प्रॉपर्टी को लीज पर दे दिया, तो कुछ प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी बेच दी। इनमें लेक पैलेस, जग निवास, जग मंदिर, शिव निवास, गार्डन होटल, सिटी पैलेस म्यूजियम, फतह प्रकाश जैसी बेशकीमती प्रॉपर्टीज शामिल थीं। ये सभी प्रॉपर्टी राजघराने की एक कंपनी को ट्रांसफर हो गई थीं। और यहीं से शुरू हुआ विवाद…
पिता के फैसले से नाराज होकर महेंद्र सिंह मेवाड़ ने 1983 में भगवत सिंह के ऊपर कोर्ट में केस फाइल कर दिया। महेंद्र सिंह ने कोर्ट में कहा कि रूल ऑफ प्रोइमोजेनीचर प्रथा को छोड़कर पैतृक संपत्तियों को सब में बराबर बांटा जाए। यानी जो परिवार का बड़ा बेटा होगा, वो राजा बनेगा। अपने बेटे के केस फाइल करने से भगवत सिंह नाराज हो गए। महेंद्र सिंह मेवाड़ को अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया, और अपनी वसीयत में संपत्तियों का एग्जीक्यूटर छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ को बना दिया।
41 सालों से चल रहा विवाद
Udaipur Royal Family: 41 साल हो गए है तब से ये विवाद चल रहा है। 10 नवंबर को महेंद्र सिंह मेवाड़ का निधन हो गया। इसके बाद 25 नवंबर को उनके बेटा विश्वराज सिंह के राजतिलक की रसम निभाई गई। ऐसे में चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के रहते हुए भतीजे विश्वराज सिंह मेवाड़ का राज्यअभिषेक होना बड़ी बात है। हालांकि जिला प्रशासन दोनों पक्षों को समझाने में लगी है। कुर्की का नोटिस सीटी पेलेस के गेट पर लगाया गया है। जिसमें पत्थरबाजी का भी जिक्र है।
जिला प्रशासन से कार्रवाई करने के आश्वासन के बाद विश्वराज सिंह ने अपने समर्थकों से बात की और बिना धुणी के दर्शन किए अपने निवास समोरबाग लौट गए।