छोटी बातों पर आत्महत्या
हाल के कुछ सालों में भारत में बच्चों में आत्महत्या की दर बढ़ गई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, 13,044 छात्रों ने आत्महत्या की, जो पिछले दशक में 64% की वृद्धि दर्शाता है। बिलासपुर की यह घटना इसका एक उदाहरण है, जहां मां का पढ़ाई के लिए कहना एक ट्रिगर बना। ऐसी घटनाओं के पीछे academic pressure, फैमली में तनाव, social expectations, और mental health की समस्याएं प्रमुख कारण हैं। छोटी-छोटी बातें, जैसे डांट या किसी चीज के लिए रोकना, बच्चों के लिए ये तनाव का कारण बन रही हैं, जो उनकी emotional weakness को बताती है।
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Teen Suicide Mental Health: बच्चों की Mental Condition
ऐसे बच्चों की psychological state थोड़ी अलग होती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक ऐसे बच्चे अक्सर impulsivity और emotional unstable होते हैं। उनकी सोच में distorted cognitions होती है, जहां वे छोटी-छोटी बातों को पर बहुत ज्याता सिरीयस हो जाते है। उदाहरण के लिए, माता-पिता की डांट या असफलता का डर उन्हें कमजोर और निराश महसूस कराता है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे depression, anxiety, और कम आत्मसम्मान भी जोखिम बढ़ाते हैं। Socio-environmental, जैसे परिवार में आपस में बत कम होना, बुलिंग, या बच्चों को कम्पेयर करना, उनकी मानसिक स्थिति को और कमजोर करते हैं। ऐसे बच्चे अक्सर emotional regulation में कमजोर होते हैं और तनाव से निपटने के लिए उनके पास कोई रास्ता नहीं होता है।
पहले और अब के बच्चों में अंतर
पहले के बच्चे और आज के बच्चे तनाव से निपटने में काफी अलग हैं। पहले के बच्चे सामुदायिक और संयुक्त परिवारों में रहते थे, जहां emotional support आसानी से उपलब्ध था। Tension को खेल, सामाजिक मेलजोल, और परिवार के साथ समय बिताकर कम किया जाता था। आज के बच्चे डिजिटल युग में बड़े हो रहे हैं, जहां सोशल मीडिया और competitive माहौल उनकी comparative सोच को बढ़ाता है। ऑनलाइन बुलिंग, पढ़ाई का प्रेशर, और करियर की अनिश्चितता उनके तनाव को बढ़ाती है। पहले के बच्चों में धैर्य और लचीलापन (resilience) अधिक था, क्योंकि सामाजिक अपेक्षाएं कम थीं। आज, माता-पिता और समाज की अत्यधिक अपेक्षाएं बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर बना रही हैं। साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और समर्थन की कमी इस अंतर को और गहरा करती है।