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आप दूसरों की बेटियों को संन्यासी बनने के लिए क्यों कहते हैं?
मद्रास उच्च न्यायालय ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव से पूछा कि जब उन्होंने अपनी बेटी की शादी कर दी है तो वह दूसरों की बेटियों को सांसारिक जीवन छोड़ने और तपस्वियों की तरह जीने के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहे हैं।
कोयंबटूर में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ याचिका दायर की है। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी दो बेटियों गीता कामराज उर्फ मां मथी और लता कामराज उर्फ मां मयू को ईशा योग केंद्र में रखा गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि ईशा फाउंडेशन ने उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश किया, जिसके कारण वे संन्यासी बन गईं। उनकी बेटियों को भोजन और दवा दी जा रही है, जिससे उनकी सोचने की शक्ति समाप्त हो गई है।
न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति वी शिवगानम की पीठ ने पुलिस को मामले की जांच करने और ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी मामलों की सूची तैयार करने का निर्देश दिया।
एस कामराज ने कहा कि उनकी बड़ी बेटी गीता ब्रिटेन के एक विश्वविद्यालय से एमटेक स्नातक है। उन्हें 2004 में लगभग 1 लाख रुपये के वेतन पर उसी विश्वविद्यालय में नौकरी मिली थी। उन्होंने 2008 में तलाक के बाद ईशा फाउंडेशन में योग कक्षाओं में भाग लेना शुरू कर दिया।
जल्द ही गीता की छोटी बहन लता भी ईशा फाउंडेशन में उनके साथ रहने लगीं। दोनों बहनों ने अपना नाम बदल लिया है और अब अपने माता-पिता से मिलने से भी इनकार कर रही हैं। माता-पिता ने दावा किया कि जब से उनकी बेटियों ने उन्हें छोड़ा है, तब से उनका जीवन नरक बन गया है। कामराज ने अपनी बेटियों को अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश करने की मांग की थी।
बेटियों ने कहा- हम अपनी मर्जी से जीते हैं
दोनों लड़कियां सोमवार 30 सितंबर को कोर्ट में पेश हुईं। दोनों ने कहा कि वे अपनी मर्जी से ईशा फाउंडेशन में रहते हैं। उन्हें कैद में नहीं रखा गया है। ईशा फाउंडेशन ने यह भी दावा किया कि महिलाएं स्वेच्छा से उनके साथ रहीं।