RSS भगवा को गुरु मानता है, पर तिरंगे का सम्मान करता है
rss chief mohan bhagwat statement: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि “हमारे संगठन को तीन बार प्रतिबंध का सामना करना पड़ा, तब जाकर हमें औपचारिक मान्यता मिली।” उन्होंने कहा कि संघ किसी व्यक्ति या राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि लोगों के समूह का संगठन है, जिसे देश की अदालतों और इनकम टैक्स विभाग ने भी मान्यता दी है। भागवत कर्नाटक के विश्व संवाद केंद्र में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कांग्रेस के उस आरोप का भी जवाब दिया कि RSS बिना रजिस्ट्रेशन के चलता है। भागवत ने कहा, “क्या आपको लगता है कि ब्रिटिश सरकार संघ का रजिस्ट्रेशन करती? स्वतंत्रता के बाद भी सरकार ने ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जो हमें पंजीकरण कराने के लिए बाध्य करे।”
संघ पर लगे प्रतिबंध और मान्यता की प्रक्रिया
भागवत ने बताया कि RSS को तीन बार बैन का सामना करना पड़ा, लेकिन संगठन कभी टूटा नहीं। “अगर हम मौजूद ही नहीं थे, तो किस पर प्रतिबंध लगाया गया?” उन्होंने सवाल उठाया। भागवत ने कहा कि “हम पर लगाए गए हर प्रतिबंध के बाद संघ पहले से ज्यादा मज़बूत होकर सामने आया और अंततः सरकारों ने हमारी वैधता स्वीकार की।”
उन्होंने कहा, “हम लोगों के समूह हैं, ठीक वैसे ही जैसे कई धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं। हिंदू धर्म भी किसी सरकारी दस्तावेज में पंजीकृत नहीं, लेकिन वह समाज में सबसे बड़ा संगठन है।”
‘भगवा हमारा गुरु, तिरंगे का सम्मान करते हैं’
तिरंगे और भगवा झंडे को लेकर उठने वाले सवालों पर भागवत ने स्पष्ट कहा, “संघ में भगवा को गुरु के रूप में माना जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम तिरंगे का सम्मान नहीं करते। तिरंगा हमारे देश का प्रतीक है, और हम उसका पूरा आदर करते हैं।” उन्होंने जोड़ा कि “संघ के हर कार्यक्रम में राष्ट्रीय ध्वज का आदर किया जाता है और राष्ट्रीय पर्वों पर तिरंगा फहराया जाता है।”
ब्रिटिश काल से अब तक का सफर
भागवत ने याद दिलाया कि संघ की स्थापना 1925 में नागपुर में हुई थी, जब भारत ब्रिटिश शासन में था। उन्होंने कहा उस समय अंग्रेज सरकार किसी भी ऐसे संगठन को मान्यता नहीं देती थी, जो राष्ट्रीय चेतना या स्वदेशी विचारों को बढ़ावा देता हो,। भागवत ने बताया कि स्वतंत्रता के बाद भी कई राजनीतिक कारणों से संघ को 1948, 1975 और 1992 में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा, लेकिन संघ हर बार पुनर्जीवित हुआ।
हिंदू राष्ट्र और संविधान पर भागवत की टिप्पणी
कार्यक्रम में भागवत ने कहा, “भारत का हिंदू राष्ट्र होना किसी के विरोध में नहीं है। यह न संविधान के खिलाफ है और न ही लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ।” उन्होंने कहा कि “हमारी संस्कृति में सबको साथ लेकर चलने की भावना है। संघ का लक्ष्य समाज को जोड़ना है, तोड़ना नहीं।”
भागवत ने जोर देकर कहा कि हिंदू होना मतलब भारत के प्रति जिम्मेदारी लेना। उन्होंने कहा, “भारत के मुसलमान और ईसाई भी उसी पूर्वजों के वंशज हैं, बस उन्हें यह याद नहीं दिलाया गया। भारत में कोई अहिंदू नहीं है।”
rss chief mohan bhagwat statement: संघ के विस्तार की योजना
अपने भाषण में भागवत ने यह भी बताया कि आने वाले वर्षों में संघ का लक्ष्य हर गांव, हर वर्ग और हर जाति तक पहुंचना है। उन्होंने कहासंघ अपने शताब्दी वर्ष तक यह सुनिश्चित करेगा कि भारत का कोई भी व्यक्ति संगठन से अनजान न रहे,। भागवत ने कहा कि संघ विविधता को विभाजन नहीं, बल्कि एकता की सजावट मानता है।
कार्यक्रम में शामिल प्रमुख चेहरे
इस कार्यक्रम में RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, कई सामाजिक संगठन के प्रतिनिधि और कर्नाटक के स्वयंसेवक मौजूद थे। भागवत ने शनिवार को भी इसी मंच से भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “भारत की मूल संस्कृति हमेशा से हिंदू रही है, और यह हमारी राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा है।”
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