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राजा के हमले से बचने ग्रुप में जाती हैं महिलाएं
Panna Tiger: मई का महीना चल रहा है और इस समय मध्यप्रदेश भीषण गर्मी के चपटे में है.वही इस चिलचिलाती गर्मी के बीज प्रदेश के कई जिलों में भीषण जल संकट गहराया हुआ है.कई-कई गांवों में हालात ऐसे है की लोग अपनी प्यास बुछाने के लिए जान की बाजी लगाने से भी नहीं चूक रहे.हम आपको ऐसे ही गांव ले चलते है.जहां गांव के लोग उसी झरने ने अपनी प्यास बुझा रहे है.जिस झरने से जंगल का राजा बाघ भी पानी पीने आता है.
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Panna Tiger से जुडी बड़ी बातें
ये गांव है पन्ना टाइगर रिजर्व की किशनगढ़ रेंज का पाठापुर गांव। इस गांव में 100 से ज्यादा आदिवासी परिवार रहते हैं। प्यास बुझाने का एक ही जरिया है,वो भी गांव से करीब एक किलोमीटर दूर. पहाड़ी से रिसता झरना। यहां पहुंचना पहाड़ चढ़ने जैसा है। इसी झरने से बाघ और अन्य जंगली जानवर भी प्यास बुझाते हैं। ग्रामीणों को इनके हमले का डर रहता है।
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Panna Tiger: करना पड़ता है दिक्कत का सामना
Panna Tiger: इस गांव के लोगों के पूरी साल जलसंकट जूझते हैं, लेकिन गर्मी के दिनों में हालात और भी ज्यादा बुरे हो जाते है. 40 से 45 डिग्री टेंप्रेचर की झुलसा देने वाली गर्मी में गांववाले एक बार पानी का डिब्बा लेकर निकले तो फिर पूरा दिन खत्म हो जाता है। इनके दिन की शुरुआत पानी के लिए मशक्कत से होती है और रात भी इसी जद्दोजहद में खत्म हो जाती है। गांव में किसी ने आज तक हैंडपंप नहीं देखा। न ही कोई बोरवेल यहां है।गांव के लोग टेड़े मेडे और पथरीले रास्ते से होकर झरने तक पहुंचते हैं। नीचे उतरने और पानी के भरे बर्तन को ऊपर लाने के लिए रस्सी का सहारा लेते हैं।
Panna Tiger: पानी के लिए करना पड़ता है इंतजार
गांव की महिलाओं और बच्चों को दो किलोमीटर चलकर ही झरने तक जाना पड़ता है। तभी उन्हें पानी उपलब्ध हो पाता है। युवाओं का कहना है कि हमारा पूरा समय पानी भरने में ही निकल जाता है। गर्मी के मौसम में झरने में पानी कम होने से अपनी बारी आने के लिए 2 से 3 घंटे तक इंतजार करना पड़ता है। इसके बाद वह गांव के अन्य दोस्तों के साथ पानी को रस्सियों के सहारे ऊपर तक चढ़ाते हैं। दिनभर मशक्कत करने के बाद वह 14 लीटर के 4 से 6 डिब्बा पानी ही ऊपर ले जा पाते हैं।
Panna Tiger: बाघ से बचने के लिए ग्रुप में आती हैं महिलाएं
Panna Tiger: गर्मी के मौसम में झरने से कम पानी निकलने की वजह से पर्याप्त मात्रा में लोगों को पानी नहीं मिल पाता। गांव की महिलाएं सिर पर मटका रखकर पहाड़ी रास्ते से झील तक जाती हैं। यहां बने कुंड से पानी भरकर लाती हैं। महिलाएं बताता हैं. यह झरना जंगली जानवरों और हमारे लिए पानी का एक मात्र जरिया है. जंगली जानवर भी यहां पानी पीने के लिए आते हैं और हम भी घर के लिए यहां से ही पानी भरकर ले जाते है. जानवरों से बचने के लिए हम 6 से 8 महिलाओं के समूह बनाकर में पानी भरने के लिए जाती हैं।