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क्यों करते हैं सनातनी साधु पंच अग्नि साधना, कितनी बार करना है जरूरी
Panch Agni Sadhna: भारत में भीषण गर्मी के मौसम में जब लोग अपने घरों में कैद हो जाते हैं। तापमान 45 डिग्री पार चला जाता है। और गरम हवा के गालों पर पड़ते चांटे। ऐसे हालात में भी कोई अपने चारों तरफ आग जलाकर पूरे दिन बैठ जाए।
जी हां भारत में ही ऐसा होता है हमारे साधू महात्मा हठ योग से अपने शरीर की सीमाओं के पार चले जाते हैं। ऐसी ही एक साधना है अग्नि तपस्या और पंच अग्नि साधना।
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Panch Agni Sadhna: पंचाग्नि साधना से अग्नि तत्व को सिद्ध किया जाता है। अग्नि मंचमहाभूतों में से एक है इन पंच महाभूतों से ही पूरी सृष्टि का सृजन हुआ है। यदि इन तत्वों को सिद्ध कर लिया जाए तो पूरे संसार में कुछ भी असंभव नहीं है। सिद्ध करने वाला ही सृजनकर्ता हो जाता है वह अपनी इच्छानुसार इनका उपयोग कर सकता है।
Panch Agni Sadhna: अब आपको बताते हैं पंच अग्नि साधना के बारे में। ये साधना करने वाले संत को कई सिद्धियों की प्राप्ति होती है। पंच अग्नि साधना करते अक्सर आपको साधु दिख जाएंगे लेकिन आपका ध्यान उत्तर प्रदेश के संभल की खबर के बाद गया होगा। यहां 45 से 46 डिग्री तापमान के बीच के एक महान संत जो की पागल बाबा 3 दिन से इसी साधना में लीन थे। वो अपने चारों तरफ पांच गोबर के कंडों की आग जलाकर तपस्या कर रहे थे।
Panch Agni Sadhna: ये कोई पहली बार नहीं था इससे पहले भी वो कई बार ये साधना कर चुके हैं। बताया जा रहा है कि वो इस तरह की साधना पूरे 23 बार कर चुके हैं। लेकिन जो प्रभु की इच्छा होती हैं वही होता हैं और इस बार उनकी तपस्या पूर्ण होने से पहले ही शरीर ने साथ छोड़ दिया। उनकी आयु 75 साल से ज्यादा थी। साधु अमेठी के रहने वाले थे और ‘कमलीवाले पागल बाबा’ के नाम से मशहूर थे. बाबा ये साधना विश्व शांति और नशा मुक्ति के लिए संभल के कैला देवी इलाके में ‘पंचाग्नि’ तपस्या कर रहे थे।
Panch Agni Sadhna: अब आपके बताते हैं की क्या होती हैं पंचगाग्नि तपस्या । यह अत्यंत कठिन साधना है। पंचाग्नि साधना में महात्यागी संत अपने चारों तरफ गौ माता के गोबर के कंडे का गोला बनाकर अग्नि प्रज्वलित करते हैं। खप्पर में अग्नि रखकर सिर पर रख लेते हैं और खुले आसमान में सूर्य की तपती धूप में घंटों बैठकर साधना करते हैं।
Panch Agni Sadhna: यह साधना बसंत पंचमी से प्रारंभ होकर गंगा दशहरा तक चलती है। जो महात्मा पंचाग्नि तपस्या का संकल्प लेता है, उसे यह तपस्या 18 वर्षों तक लगातार करनी होती है। ऐसा कहा जाता हैं की इस तपस्या को संकल्प लेकर ही किया जाता हैं और अपने मन से प्रभु को जोड़ा जाता हैं जिससे आपके मन की बात प्रभु तक पहुचाई जा सके..
Panch Agni Sadhna: पंचाग्नि 5 चीजों से मिल कर बनी हैं
शास्त्रों में सूर्य को स्वर्ग की अग्नि माना गया है। अग्नि का दूसरा स्वरूप पर्जन्य कहलाता है। पर्जन्य का मतलब होता है जल या वर्षा। संसार को तीसरी अग्नि कहा गया है। पुरुष को चौथी अग्नि कहा गया है और अंत में स्त्री को पांचवीं अग्नि कहा गया है। इन सब को सम्मिलित रूप से पंचाग्नि कहते हैं।
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