Nagchandreshwar temple: बाबा महाकाल की तीर्थ नगरी उज्जैन में साल में एक बार नाग पंचमी के अवसर पर खुलने वाले भगवान श्री नागचंद्रेश्वर के पट रात्रि 12 बजे शुभ मुहूर्त में खोले गए. मंदिर के पट खुलने के बाद सर्वप्रथम पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीतगिरी महाराज ने विधि-विधान से श्री नागचंद्रेश्वर भगवान का पूजन अर्चन किया.
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दर्शन के लिए शाम से लगी लाइनें
नाग पंचमी के अवसर पर भगवान श्री नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए मंदिर के बाहर गुरुवार रात 8 बजे से श्रद्धालु की भीड़ लगने लगी थी. लालपुल से होते हुए कर्कराज मंदिर से चारोधाम मंदिर से हरसिद्धि माता मंदिर से बड़े गणेश से प्रवेश दिया जा रहा है. वहीं रात में ही 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन किए.और करीब ढाई लाख से ज्यादा श्रद्धालु नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर चुके है.
Nagchandreshwar temple: मंदिर में दर्शन का समय
नागचन्द्रेश्वर मंदिर में दर्शन का समय दिनांक 8 अगस्त की मध्य रात्रि 12.00 बजे से शुक्रवार 9 अगस्त की रात्रि 12.00 बजे तक रहेगा. इसके बाद भगवान नागचंद्रेश्वर की आरती के बाद पट बंद हो जाएंगे, फिर एक साल बाद भगवान नागचंद्रेश्वर के पट खुलेंगे.
Nagchandreshwar temple: दर्शन के लिए ये रहेगा रुट
श्रद्धालु भील समाज धर्मशाला से प्रवेश कर गंगा गार्डन के समीप से होते हुए चारधाम मंदिर पहुंचे. वहां से पार्किंग स्थल जिगजेग हरसिद्धी चौराहा से होते हुए रूद्रसागर के समीप से बड़ा गणेश मंदिर के द्वार नम्बर 04 व 05 के रास्ते से निकाल कर विश्राम धाम एरोब्रिज से होकर भगवान श्री नागचन्द्रेश्वर जी के दर्शन करेंगे. दर्शन उपरांत एरोब्रिज के द्वितीय ओर से रेम्प मार्बल गलियारा होते हुए नवनिर्मित मार्ग के द्वार क्रमांक 04 के सम्मुख से बड़ा गणेश मंदिर पहुंचेगे और वहां से हरसिद्धि चौराहा से नृसिंह घाट तिराहा होते हुए पुनः भील समाज धर्मशाला पहुंचेंगे.
सनातन धर्म में सर्प को पूजनीय माना गया है। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है और उन्हें गाय के दूध से स्नान कराया जाता है। माना जाता है कि जो लोग नाग पंचमी के दिन नाग देवता के साथ ही भगवान शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करते हैं, उनके जीवन से कालसर्प दोष खत्म हो जाता है। साथ ही राहू और केतु की अशुभता भी दूर होती है।
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नेपाल से लाई गई प्रतिमा
भगवान नागचंद्रेश्वर की मूर्ति काफी पुरानी है और इसे नेपाल से लाया गया था। नागचंद्रेश्वर मंदिर में जो अद्भुत प्रतिमा विराजमान है, उसके बारे में कहा जाता है कि वह 11वीं शताब्दी की है। इस प्रतिमा में शिव-पार्वती अपने पूरे परिवार के साथ आसन पर बैठे हुए हैं और उनके ऊपर सांप फन फैलाकर बैठा हुआ है। उज्जैन के अलावा कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।यह दुनिया भर का एकमात्र मंदिर है जिसमें भगवान शिव अपने परिवार के साथ सांपों की शैया पर विराजमान हैं।
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त्रिकाल पूजा की है परंपरा
मान्यताओं के अनुसार भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की परंपरा है। त्रिकाल पूजा का मतलब तीन अलग-अलग समय पर पूजा। पहली पूजा मध्यरात्रि में महानिर्वाणी होती है, दूसरी पूजा नागपंचमी के दिन दोपहर में शासन द्वारा की जाती है और तीसरी पूजा नागपंचमी की शाम को भगवान महाकाल की पूजा के बाद मंदिर समिति करती है। इसके बाद रात 12 बजे फिर से एक वर्ष के लिए कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
Nagchandreshwar temple: पौराणिक कथा
मान्यताओं के अनुसार सांपों के राजा तक्षक ने भगवान शिव को मनाने के लिए तपस्या की थी, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए और सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया।वरदान के बाद से राजा तक्षक ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही इच्छा थी कि उनके एकांत में विघ्न न हो, इसलिए यही प्रथा चलती आ रही है कि केवल नागपंचमी के दिन ही उनके दर्शन होते हैं, बाकी समय पर परा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।