Contents
- 1 मध्य प्रदेश के ब्रांड हैं डॉ. मोहन यादव, ये खूबियां बनाती हैं सबसे अलग-सबसे खास
- 2 CM Mohan Yadav: विजन ओरिएंटेड मोहन यादव का विजन
- 3 मोहन यादव की सिंपल लाइफस्टाइल
- 4 चाय-पोहे की दुकान पर काम, किताबों से लगाव
- 5 CM Mohan Yadav: जीवन का 17वां साल बना टर्निंग पॉइंट
- 6 CM Mohan Yadav इरादों के मजबूत हैं
- 7 हर सुख-दुख में साथ निभाते हैं डॉ. मोहन यादव
- 8 फैमिली मैन हैं डॉ. मोहन यादव
मध्य प्रदेश के ब्रांड हैं डॉ. मोहन यादव, ये खूबियां बनाती हैं सबसे अलग-सबसे खास
CM Mohan Yadav: साल 2013 के चुनाव की बात है। मतदान वाले दिन डॉ. मोहन यादव ने मां लीलाबाई यादव के पैर छुए। तब मां ने कहा बेटा चुनाव लड़ रहा है, तो हारकर मत आना। मतगणना हुई, डॉ. मोहन यादव जीते, मां का आशीर्वाद लेने पहुंचे तो मां ने गले लगा लिया. दोनों की आंखों में आंसू थे.
CM Mohan Yadav: आज मां इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन बेटा मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बन चुका है. 1984 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले मोहन यादव की छवि सड़क से संघर्ष तक की रही है. 41 साल तक पार्टी की सेवा करने के बाद आज वे एमपी बीजेपी के सबसे बड़े ब्रांड हैं. यहां पढ़िए मोहन यादव के बचपन से लेकर अब तक की लाइफ की अनटोल्ड स्टोरी…
13 दिसम्बर 2023 को डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली
CM Mohan Yadav: विजन ओरिएंटेड मोहन यादव का विजन
CM Mohan Yadav: 13 दिसंबर 2023…वह दिन जब 58 साल के डॉ. मोहन यादव मध्य प्रदेश के 19वें मुख्यमंत्री बने. उनकी पहली ही स्पीच में पता चल गया कि उनमें विकास का विजन और एक्शन दोनों है. वे दूर तक सोच रखते हैं, उस पर अमल करते हैं और आगे बढ़ते हैं. उनकी यही काबिलियत को भाजपा और संघ को पसंद है. इसकी झलक उनके कई इंटरव्यू में भी देखने को मिली.
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CM Mohan Yadav: नई दुनिया को दिए इंटरव्यू में मुख्यमंत्री मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने कहा, ‘उनका लक्ष्य है कि मध्यप्रदेश मोदी जी के गुजरात जैसा बन जाए.’ वह इस पर काम भी कर रहे हैं.
CM Mohan Yadav: सरकार के 100 दिन पूरे होने पर दैनिक भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में जब मोहन यादव से पूछा गया कि आपकी पहचान सबसे सख्त और तेज फैसले वाले CM के रूप में हो रही है? तब उन्होंने जवाब देते हुए कहा, ‘सुशासन का पहिया सख्ती बिना नहीं घूम सकता है. समाज जितना कोमल है, उतना कठोर भी. हमें समय को देखते हुए फैसले लेने पड़ते हैं. मैं उनमें से नहीं जो किसी भी काम को समय पर छोड़ देते हैं. जो काम हाथ में है, सबसे पहले उसे खत्म करिए. सेहत ठीक रहे, इसके लिए कई बार कड़वी दवाई लेनी ही पड़ती है.अगर कड़े फैसलों से जनता खुश है, सुखी है तो फिर इससे परहेज कैसा?’
मोहन यादव की सिंपल लाइफस्टाइल
डॉ. मोहन यादव काफी सिंपल लाइफ जीना पसंद करते हैं. महाकाल के भक्त हैं, सबसे फिट राजनेताओं में उनकी गिनती होती है, कुश्ती पसंद है, तलवारबाजी और लट्ठबाजी में भी उनका जवाब ही नहीं, सुबह-सुबह उठ जाते हैं, मॉर्निंग वॉक और साइकिलिंग करना नहीं भूलते हैं, हमेशा एक्टिव रहते हैं. उन्हें घर का बना खाना ही पसंद है. खाना भी बिल्कुल साधारण ही रहता है.
राज्य के सबसे ताकतवर पद पर बैठे डॉ. मोहन यादव स्वभाव से कितने सरल और जमीन से जुड़े नेता हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री रहते हुए भी उनकी फैमिली सीएम हाउस में नहीं रहती है.
NDTV इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में जब उनसे इसे लेकर सवाल पूछा गया तो उनका जवाब दिल छू लेना वाला था. उन्हेंने कहा, ‘मेरा बेटा भोपाल में हॉस्टल में रहकर MBBS कर चुका है और अब MS कर रहा है. मुझे लगता है कि पढ़ाई का एक माहौल होता है. अगर वो सीएम हाउस में आबोहवा में रहेगा तो उस पर इसका असर जरूर पड़ेगा. ऐसे में उसकी पढ़ाई डिस्टर्ब होगी. अगर उसे फोकस होकर पढ़ना है तो अलग ही रहना होगा. पढ़ाई के बाद उसे जो करना है, वो उसके अपने विचार ही होने चाहिए.’
चाय-पोहे की दुकान पर काम, किताबों से लगाव
CM Mohan Yadav: 25 मार्च, 1965 में उज्जैन की गीता कालोनी में रहने वाले पूनमचंद यादव के घर मोहन यादव का जन्म हुआ. पिता एक मिल में काम करते थे. परिवार का गुजारा करने पूनमचंद अपने भाई शंकर लाल के साथ मालीपुर इलाके में चाय-पोहे और भजिए की दुकान लगाते थे.
CM Mohan Yadav जब थोड़े बड़े हुए तो पिता-चाचा की मदद करने दुकान आया करते थे. जब चाय-पोहे की दुकान अच्छी चलने लगी तो उसे बढ़ाकर एक रेस्टोरेंट भी चलाने लगे थे. डॉ. मोहन यादव जब छोटे थे, तब घर में तंगहाली थी लेकिन उन्हें किताबों से गजब का लगाव था.
मीडिया से बातचीत में उनके पिता पूनमचंद यादव और बड़ी बहन ग्यारसी यादव ने भाई के संघर्षों के किस्से सुनाए. उन्होंने बताया ‘मोहन बहुत ज्यादा मेहनती रहा है. खेती के साथ पढ़ाई करता रहाता था. तब पिता की ज्यादा कमाई नहीं थी, इसलिए उसकी पढ़ाई पर संकट आ गया था लेकिन तब स्कूल के टीचर सालिगराम ने मेहनत, लगन और होनहारी देखकर उन्हें अपने साथ रख लिया और पढ़ाया-लिखाया, पूरा खर्च भी उठाया. अब सालिगराम दुनिया में नहीं है लेकिन मोहन उन्हें आज भी याद करते हैं.
CM Mohan Yadav: जीवन का 17वां साल बना टर्निंग पॉइंट
CM Mohan Yadav: डॉ. मोहन यादव बीजेपी में आखिरी पंक्ति के नेता हुआ करते थे लेकिन आज अपनी मेहनत के दम पर पहली पंक्ति में सबसे आगे खड़े हैं. उन्होंने 5वीं तक की पढ़ाई शासकीय स्कूल बुधवारिया, इसके बाद जीवाजीगंज स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई की. उन्होंने BSC, LLB, MA, MBA और PHD की डिग्री ली है. उनकी लाइफ में सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट तब आया, जब उनकी उम्र 17 साल थी. इसी दौरान वे एबीवीपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े. यहां से उनका राजनीतिक करियर आगे बढ़ा.
1982 में एबीवीपी और बाद में भाजयुमो में काम करते हुए मोहन यादव संघ में लगातार सक्रिय रहे. उन्होंने अपना पहला चुनाव 1982 में ही माधव साइंस कॉलेज में एबीवीपी से सहसचिव के पद पर लड़ा था. उनके साथ के ओम जैन ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि तब अध्यक्ष लोकेश शर्मा का फॉर्म निरस्त हो गया था.
मोहन और साथियों ने बड़ा आंदोलन छेड़ दिया. पूरा उज्जैन बंद करवा दिया. यहीं से उनका जुझारूपन और राजनीतिक ताकत दिखाई दिया. दो साल बाद 1984 में अध्यक्ष का चुनाव लड़े और जीत गए. उस समय से ही सभी को साथ लेकर चलने की उनकी आदत थी, जो उनकी पर्सनालिटी को बताता है.
CM Mohan Yadav इरादों के मजबूत हैं
डॉ. मोहन यादव को 1993 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में जिम्मेदारी मिली. जिसे निभाने के बाद उन्हें भारतीय युवा मोर्चा के अलग-अलग पदों की जिम्मेदारी दी गई. मीडिया से बातचीत में उनके राजनीतिक साथी और विधायक अनिल जैन कालूहेड़ा ने बताया कि ‘राजनीति में पारदर्शिता सीखनी है तो मोहन यादव (CM Mohan Yadav) से सीखना चाहिए. एक बार कुछ ठान लिया तो उसे पूरा करने तक रुकते नहीं हैं. जिन पदों पर रहें, उनसे जुड़े लोग आज भी उनके व्यक्तित्व के कायल हैं.’
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, भूपेंद्र यादव, धर्मेंद्र प्रधान उनके साथ के ABVP में थे. 2004 में उन्हें पर्यटन निगम का अध्यक्ष बनाया गया, जहां उन्होंने हटकर जबरदस्त काम किया और राज्य के पर्यटन को बिल्कुल नया ही बना दिया.
हर सुख-दुख में साथ निभाते हैं डॉ. मोहन यादव
डॉ. मोहन यादव में अपनत्व की भावना है. वह सभी को साथ लेकर ही चलना चाहते हैं. उनके साथी बताते हैं कि मोहन हमेशा सुख-दुख में खड़े रहते हैं. एक बार किसी से मिल लें तो दोबारा कभी भूलते नहीं हैं. हमेशा उन्हें साथ लिए रहते हैं.
जब 2008 में उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट मिला, तब कार्यकर्ताओं के मना करने पर बडऩगर से विधानसभा का टिकट मोहन यादव ने लौट दिया था. इसके बाद 5 साल का इंतजार कर 2013 में दक्षिण से टिकट मिलने पर चुनावी मैदान में उतरे. उनकी इसी खूबी की बीजेपी हाईकमान भी कायल है.
फैमिली मैन हैं डॉ. मोहन यादव
डॉ. मोहन यादव (CM Mohan Yadav) नेता, मुख्यमंत्री ही नहीं फैमिली मैन भी हैं. उनके दो बच्चे डॉक्टर हैं, एक LLM कर रहा है. बहन कलावती यादव बताती हैं कि संयुक्त परिवार मोहन यादव को सबसे ज्यादा पसंद है. उनमें कूट-कूटकर संस्कार भरे हैं.
10 साल विधायक और मंत्री रहने के बावजूद उनकी फैमिली का कोई सदस्य आज तक भोपाल बंगले पर नहीं रुका है. बच्चों को भी उन्होंने अच्छे संस्कार सिखाए हैं.
डॉ. मोहन यादव (CM Mohan Yadav) की धर्म में अटूट आस्था है. बेहद सिंपल जिंदगी जीते हैं. कुछ जानने वालों के अनुसार, डॉ. मोहन यादव की धार्मिक आस्था भी गजब की है. दोनों नवरात्र, चातुर्मास, एकादशी और प्रदोष का व्रत रखते हैं. भगवान भोलेनाथ में उनकी अगाध आस्था है. भगवान श्रीकृष्ण और उनसे जुड़े साहित्य का पूरा ज्ञान डॉ. मोहन यादव रखते हैं. शायद यही कारण है कि मोहन यादव पीएम मोदी, बीजेपी हाईकमान, कार्यकर्ता और जनता की पहली पसंद हैं.