धर्म को मानने वाले लोग अपने पूर्वजों और पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्धकर्म व पिंडदान करते हैं। इससे उनके पितृ अतिप्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितरों के आशीर्वाद से घर परिवार में धन-दौलत सुख-समृद्धि मान समान और ऐश्वर्या की वृद्धि होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्र पद मानस के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक यानी की 2 अक्टूबर तक आयोजित होगा। पितृ पक्ष के पहले दिन 18 सितंबर बुधवार को अधिकतर लोग अपने पूर्वजों का तर्पण करने के लिए नर्मदा तट शोकलपुर धाट पहुंचे वहां कुशा काला तिल जौ चावल जनेऊ एवं नया कपड़ा लेकर पहुंचे जहां उन्होंने नर्मदा घाटों पर कल कल बहती जल धारा में डुबकी लगाई और जिन लोगों को पितरों का तर्पण करने की जानकारी नहीं थी उन्हें नदी घाट पर मौजूद पंडित अखलेश शर्मा द्वारा तर्पण करने की विधि पूरे विधि विधान से पूजन इत्यादि कर बताई गई। साथ ही ओम आगच्छन्तु मैं पितृ और ग्रहंतू जलांजलिम का जाप करते हुए पितरों के नाम का उच्चारण कराया गया। इस दौरान कुछ लोगों ने अपने पितरों का नाम लेते हुए 11 बार तो किसी ने 16 बार अंजलि में जल भरकर कुशा के द्वारा तिल और जौ के मिश्रण के साथ पृथ्वी की ओर दक्षिण दिशा में जल छोडा। इसी प्रकार नर्मदा धाट पर भी सैकड़ो की तादाद में श्रद्धालु भक्त जन पितरों का तर्पण करने के लिए पहुंचे। पन्द्रह दिनों तक पितरों का तर्पण किया जाएगा। धार्मिक मांगलिक कार्य नहीं होंगे। 15 दिनों तक लोग अपने अपने पूर्वजों का श्राद्ध करेंगे। दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए अनुष्ठान किए जाएंगे। पितरों के तर्पण से पितृ प्रसन्न होते हैं। बताया गया कि जिस तिथि को व्यक्ति का निधन होता है उसी तिथि को उसका श्राद्ध करने की परंपरा है। श्राद्ध करने से पितृ दोष शांत होते हैं। पूर्वजों की कृपा मनुष्य पर हमेशा बनी रहती है। जानकारी अनुसार अपनी सुविधानुसार धरो में पितृपक्ष के दिनों में परात में पानी भरकर पूर्वजों को कुशा का धारण कर शहद दूध अर्पित करने के बाद उन्हें पांच भागों में भोजन अर्पित करते हैं। लेकिन अभी भी ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो प्रति दिन नर्मदा के घाटों पर जाकर पंडितों के जरिए पितृपक्ष के अनुष्ठान रोजाना सम्पन्न कराते हैं। प्रतिदिन सुबह से ही नर्मदा तक शोकलपुर घाट पर दर्पणों के लिए लोग पहुंचने लगते हैं।