कोलकाता की सड़कों पर उतरीं ममता बनर्जी

mamata banerjee sir protest controversy: मंगलवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन” (SIR) के खिलाफ 3.8 किलोमीटर लंबा विरोध मार्च निकाला। इस दौरान बड़ी संख्या में टीएमसी कार्यकर्ता और पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी उनके साथ मौजूद रहे। ममता ने आरोप लगाया कि SIR को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट में गुपचुप बदलाव किए जा सकें।
“हर बांग्लाभाषी बांग्लादेशी नहीं होता”
ममता ने रैली में कहा, “जैसे हर उर्दू बोलने वाला पाकिस्तानी नहीं होता, वैसे ही हर बांग्लाभाषी बांग्लादेशी नहीं होता।”
उन्होंने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि बंगाल की पहचान और सम्मान पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि SIR के ज़रिए कुछ वर्गों को “बाहरी” बताने की कोशिश की जा रही है, जो संविधान और एकता के खिलाफ है।
विपक्ष ने कहा यह ‘जमात की रैली’ है
इधर, विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने ममता के मार्च को “जमात की रैली” बताया। उन्होंने कहा कि यह भारतीय संविधान की नैतिकता के खिलाफ है। वहीं, बंगाल BJP अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा कि अगर ममता जी को कोई आपत्ति है, तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए, सड़कों पर नहीं उतरना चाहिए।
देश के 12 राज्यों में शुरू हुआ SIR अभियान
चुनाव आयोग ने मंगलवार से SIR (Special Intensive Revision) की प्रक्रिया 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू की है। इनमें पश्चिम बंगाल, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु शामिल हैं जहां 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। असम में भी जल्द चुनाव हैं, लेकिन वहां SIR का शेड्यूल फिलहाल तय नहीं हुआ है।
SIR में नागरिकता की जांच पर फोकस
आयोग के सूत्रों के अनुसार, SIR के दौरान नागरिकता की पुष्टि और मतदाता सूची की सफाई पर ध्यान रहेगा। हालांकि असम में फिलहाल नागरिकता की जांच नहीं की जाएगी, क्योंकि वहां NRC (National Register of Citizens) प्रक्रिया अधूरी है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया कि असम की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए वहां के लिए अलग आदेश जारी किया जाएगा।
असम में 1971-1987 के बीच जन्मे नागरिकों पर उलझन
असम में नागरिकता को लेकर स्थिति सबसे जटिल है। 1985 के असम समझौते के अनुसार, 1971 में बांग्लादेश से आए लोगों को वापस भेजने का प्रावधान था। इससे 1971 से 1987 के बीच जन्मे नागरिकों की स्थिति अस्पष्ट हो गई। 1997 में मुख्य चुनाव आयुक्त एम.एस. गिल ने “डी-वोटर” (डाउटफुल वोटर) की श्रेणी बनाई, ताकि संदिग्ध नागरिकों की जांच तक उनके वोटिंग अधिकार रोके जा सकें।
NRC प्रक्रिया और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
2005 से 2019 के बीच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर असम में NRC की प्रक्रिया चली। इस दौरान करीब 19 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए, लेकिन प्रक्रिया अधूरी रह गई। अब चुनाव आयोग की मंशा है कि नागरिकता विवाद सुलझने तक असम में SIR सिर्फ वोटर वेरिफिकेशन तक सीमित रखा जाए।
वोटर लिस्ट की समीक्षा का लक्ष्य
असम में आखिरी बार गहन समीक्षा 2004 में हुई थी, तब राज्य में 1.7 करोड़ मतदाता थे। अब यह संख्या बढ़कर 2.6 करोड़ हो चुकी है। आयोग घर-घर जाकर मतदाताओं की पुष्टि करेगा कि कौन स्थायी निवासी हैं, कौन बाहर जा चुके हैं और कौन अब जीवित नहीं हैं।
Read More:- कभी थक कर हार गए हो: ये सच्ची कहानी आपके दिल को छू लेगी…
