जानिए शरद पूर्णिमा से जुड़ी परंपराएं
शरद ऋतु पूर्णिमा बुधवार, 16 अक्टूबर को है। ऐसा माना जाता है कि दिवाली से पहले आश्विन पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और जो भक्त रात में जागते हैं और लक्ष्मी की पूजा करते हैं उन्हें देवी का विशेष आशीर्वाद मिलता है। एक और मान्यता है कि इस तिथि की रात को श्री कृष्ण गोपियों के साथ महारस करते हैं। इस पर्व के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मथुरा-वृंदावन, गोकुल, गोवर्धन पर्वत, निधिवन पहुंचते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषी पं. मनीष शर्मा के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान में खीर बनाने की परंपरा है। किंवदंती है कि इस रात चंद्रमा की किरणें आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होती हैं। इसी वजह से शरद ऋतु पूर्णिमा की रात खीर बनाई जाती है, रात में लोग चांदनी में बैठकर ध्यान करते हैं और मंत्रों का जाप करते हैं।
शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इस त्योहार की रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी की यात्रा करती हैं और पूछती हैं कि कौन जाग रहा है। इस रात लोग जागरण कर पूजा करते हैं, इनसे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। शरद ऋतु की पूर्णिमा की रात को, चंद्रमा अपने सभी सोलह रंगों के साथ दिखाई देता है।
चंद्र देव को खीर अर्पित की जाती है
पौराणिक कथाओं में चंद्रमा को शांति और पवित्रता का प्रतीक माना गया है। चंद्रमा सबसे तेज गति से घूमने वाला ग्रह है, यह लगभग ढाई दिन में अपनी राशि परिवर्तन करता है, यही कारण है कि ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का एजेंट कहा जाता है। यह ग्रह कर्क राशि का स्वामी है।
पूर्णिमा की रात चंद्रमा पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है। जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा से संबंधित दोष हैं उन्हें पूर्णिमा की रात चंद्र देव की पूजा करनी चाहिए और खीर का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि चंद्र देवता को खीर चढ़ाने से चंद्रमा के दोषों का प्रभाव कम होता है।