थक कर बैठ जाने से बेहतर है रुक कर फिर चल पड़ना
रात के 2 बजे थे। मोबाइल की स्क्रीन पर बस एक ही नोटिफिकेशन चमक रहा था काम पूरा करो वरना डेडलाइन मिस हो जाएगी।
मैं थक चुका था। सिर भारी, आंखें जल रही थीं, और मन… वो तो मानो कहीं गुम हो चुका था। सोचा, क्या ये वही ज़िंदगी है, जिसके लिए कभी सपने देखे थे?
पर उस रात कुछ बदला। अचानक मम्मी की पुरानी आवाज़ कानों में गूंजने लगी “बेटा, हार मानने से पहले एक बार रुक कर सोच लेना, क्या वाकई सब कुछ खत्म हो गया है?” और यक़ीन मानिए, ये बस एक याद नहीं थी, ये एक थप्पड़ था नींद से जगाने वाला।
हम सब थकते हैं और ये ठीक है।
हर किसी की ज़िंदगी में ऐसा वक़्त आता है जब सब बेकार लगने लगता है। वो नौकरी जो कभी ‘ड्रीम जॉब’ थी, अब बोझ बन जाती है। रिश्ते, जो कभी सुकून देते थे, अब सवालों से भर जाते हैं। और सबसे बड़ा डर? दूसरों से नहीं, खुद से हार जाने का।
लेकिन रुकिए।
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी हार का सबसे बड़ा कारण हार नहीं, बल्कि जल्दी हार मान लेना है?
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एक कहानी जो बदल सकती है आपका नज़रिया
मेरे एक दोस्त रवि की कहानी सुनिए। कॉलेज में टॉप करने वाला लड़का, अचानक डिप्रेशन में चला गया। कारण? उसका स्टार्टअप फेल हो गया। सबने कहा रवि अब कुछ नहीं कर पाएगा।
लेकिन आज वही रवि, अपने दूसरे स्टार्टअप से सैकड़ों लोगों को रोजगार दे रहा है। कैसे? उसने बस एक चीज़ की रुक कर फिर से शुरू किया।
जब अगली बार ज़िंदगी भारी लगे, तो बस एक काम कीजिए 1 मिनट के लिए आंखें बंद करें, और खुद से पूछें, क्या मैं वाकई हार गया हूँ, या बस थक गया हूँ? ज़्यादातर बार जवाब मिलेगा: मैं बस थका हूँ।
और याद रखिए, थकना गुनाह नहीं है। हार मान लेना है।
ज़िंदगी कोई परफेक्ट प्लान नहीं है। यह अधूरे पलों, अधूरी कोशिशों, और अधूरी कहानियों से बनती है। लेकिन जो लोग इन अधूरी चीज़ों में भी उम्मीद ढूंढ लेते हैं, वही असल में जीतते हैं।
तो अगली बार जब लगे कि सब कुछ खत्म हो रहा है रुकिए नहीं, बस थोड़ी देर ठहरिए।
क्या आपने कभी खुद से ये सवाल पूछा है ‘मैं हार क्यों मान रहा हूँ?’
कमेंट में अपनी कहानी ज़रूर शेयर करें, शायद किसी और की उम्मीद बन जाए।
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