मुरैना का सुनसान बीहड़ और चिलचिलाती धूप और बागी…..जी हां हम बात कर रहे हैं चम्बल की, जहां पानी कम और खून ज्यादा बहता है। यहां लाशें तैरती हुई अपना किनारा ढूंढ लेती हैं।यहां सालों से गायब लोगों की लाशें मिल जाती हैं।
Jagjivan Parihar: बीहड़ से जब कोई ट्रेन गुजरती थी तो लोग चम्बल के नाम से खिड़कियां तक बंद कर लेते थे. उसी खौफनाक इलाके की पूरी कहानी, हमारी विशेष सिरीज में.
Jagjivan Parihar: प्यार ने बनाया बागी
शुरू करते हैं एक चम्बल की बीहड़ में रहने वाले बागियों की कहानी. चंबल का एक ऐसा बागी जो किसी मजबूरी के कारण नहीं बल्कि प्रेम के कारण बीहड़ में कूद गया। नाम था जगजीवन परिहार.
Jagjivan Parihar: वहीं जगजीवन परिहार जो पुलिस एन्काउंटर मे मारा गया। आज उसी जगजीवन परिहार की कहानी. उसकी ज़िंदगी शुरू होती है. उत्तर प्रदेश के इटावा और मध्य प्रदेश भिंड जिले की सीमा पर ललूपुरा चौरेला गांव से. यहीं उसका जन्म हुआ, बचपन बीता और बड़े होने पर प्यार भी हुआ. हमारे यानी चंबल में पैदा हुआ बड़ा हुआ. (हमारे चम्बल से मतलब मैं भी चम्बल अंचल मे पैदा हुआ था मेरी कहानी बाद मैं पहले जगजीवन परिहार की)
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जिसके लिए जान ली और दी जाती है उसी का किया दान
यहां के बारे में कहावत हैं चम्बल के लोग जिनको दिल से चाहे तो उसके लिए जान दे दे, दुनिया से लड़ जाए, और जिससे दुश्मनी कर लें उसको पाताल तक न छोड़े।
जगजीवन परिहार के बारे में कहा जाता है कि वह दिलखुश था। स्कूल में मन नहीं लगा तो शुरू से पढ़ाई में कमजोर रह गए। लेकिन दयालु इतना कि अपनी जमीन स्कूल के दान कर दी और उसी में चपरासी की नौकरी करने लगा।
Jagjivan Parihar: जमीन की कीमत चंबल में क्या होती है इसे समझ लीजिए. चम्बल के लोगों के पास उनकी धरोहर जमीन ही होती हैं, जिसके लिए जान ली जाती हैं और दी जाती हैं
पुलिस के लिए की मुखबरी
Jagjivan Parihar: खैर बीच-बीच में आपको ऐसी बातें बताता रहूँगा. तो आगे बढ़ते हैं. चंबल इलाके में कहा जाता हैं पुलिस की न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी, बस यहीं से हुआ जगजीवन परिहार के बागीपन का जन्म।
पुलिस अधिकारियों के संपर्क में आने के बाद जगजीवन परिहार उनके लिए मुखबिर करने लगा। वो डकैत गिरोहों से नजदीकी बढ़ाकर खबर पुलिस को देता।
मुखबिर से डकैत की शुरुआत
यहां फिर कहानी में ट्विस्टआता है। कहावत हैं, घुटने कितने भी देर सीधे रहे लेकिन आखिर मुड़ते पेट के तरफ ही हैं. तो बस हुआ ही ऐसा जगजीवन पुलिस की मुखबिरी छोड़, डकैतों के लिए ही काम करना लगा। जब इसकी भनक पुलिस को लगी और तो उसके खिलाफ थानों में कई मामले दर्ज होने लगे.
जगजीवन परिहार कैसे बना बागी
इश्क ने जवानी में जगजीवन को भी नहीं छोड़ा. लेकिन दिलरुबा सबको नहीं मिलती, तो बस हुआ ही कुछ ऐसा की जगजीवन को उसी के गाँव में रहने वाली एक युवती से प्रेम हो गया। चम्बल में प्यार परवान नहीं चढ़ता. तो बस उसकी प्रेम कहानी ज्यादा दिन चल नहीं सकी. गाँव के रहने वाले उमाशंकर से उसका विवाद हो गया।
उमाशंकर के साथ जगजीवन की अदावत पुरानी थी. सालों तक दिल में भरा गुस्से का ज्वालामुखी आखिर फूट ही गया। प्यार न मिला तो जगजीवन ने भी बंदूक उठा ही ली.
Jagjivan Parihar: यहीं चम्बल में सदियों से होता आया हैं जब दिल में बागपन जाग जाए तो समाज सिस्टम के खिलाफ बगावत कर ही देता है। जगजीवन ने रसूखदार उमाशंकर का मर्डर और कूद गया चम्बल के बीहड़ों में। अब बीहड़ ही उसका आशियाना थे. इसके बाद फिर वो कभी अपने गाँव नहीं लौटा।
Jagjivan Parihar: 151 ब्राह्मणों को मारने की खाई कसम
बागी जगजीवन ने अपराधों की लम्बी फैरहिस्त बनाई, हत्या, अपहरण और फिरौती उसके लिए रोज का काम हो गया। दहशत इतनी कि भरी दोपहरी में लोगों ने बाहर निकलना बंद कर दिया।
Jagjivan Parihar: जगजीवन परिहार का आतंक मध्य प्रदेश राजस्थान और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाके में था. जगजीवन परिहार की गैंग पर किडनैपिंग और 50 से ज्यादा हत्याओं के केस दर्ज हुए। जगजीवन परिहार ने 151 ब्राह्मणों को मरने की कसम खाई थी। उसके लिए उसने खुद चोटी रखी। जो कसम पूरी होने पर ही काटनी थी।
Jagjivan Parihar: मौत का होता था नंगा नाच
जगजीवन परिहार के राज में मौत का नंगा नाच होता था। होली के त्यौहार पर गाँव वालों त्यौहार मना रहे थे। लेकिन ये होली न भूलने वाली होली बन गई। हवा में उड़ता गुलाल और रंग कब खूनी हो गया पता ही नहीं चल सका। मंजर बदला और चारों तरफ खून ही खून था। जगजीवन परिहार ने उसी के गाँव के दो लोगों को गोली मार दी। उसका कसूर था पुलिस की मुखबिर करना। गोलियां की आवाज से सबके कान सुन्न हो गए। जगजीवन की बंदूक से चली गोली ने दोनों को भून दिया।
Jagjivan Parihar: होली मे रंग तो था लेकिन गुलाल का नहीं खून का. पूरा मंज़र खुशी की जगह मातम में बदल गया। वो होली आज तक गाँव वाले नहीं भूले। यहां आज भी होली होती हैं लेकिन उदासी वाली। यहां आज भी बात होली की नहीं होती गोली की होती हैं।
इस घटना के बाद जगजीवन पुलिस के लिए टार्गेट 1 हो गया। जगजीवन के गिरोह पर 15 लाख के इनाम का ऐलान हो गया. पूरी चम्बल में पुलिस का ही पहरा नजर आने लगा।
Jagjivan Parihar: खौफ का अंत
चम्बल की पुरानी कहानी हैं की वो एक वक्त के बाद फिर अपने उफान पर जरूर आती हैं तो बस फिर क्या था, जो बीहड़ जगजीवन की पनागाह था और जिस चम्बल के पानी को पीकर उसकी प्यास बुझ रही थी. अब उन्होंने भी अपना साथ न देना का फैसला कर ही लिया. फिर क्या जगजीवन के जीवन और उसके खौफ के अंत की तारीख मुकर्र हो गई थी. वो तारीख थी 14 मार्च 2007 इस दिन तीन राज्यों की पुलिस ने जगजीवन और उसके गिरोह को चारों तरफ से घेर लिया. बस आतंक का अंत होना बाकी था.
Jagjivan Parihar: इस बार न तो पुलिस पीछे हटने को तैयार थी, और न ही बाघियों की गैंग. लेकिन ये पहला एनकाउंटर जो की करीब 20 घंटे तक चला. इसमें वक्ता थोड़ा ज्यादा लग गया..बस इसी का फायदा लेकर जगजीवन ने अपने जीवन को बचाने के लिए फिर एक कोशिश की. गोलियों की गड़गड़हट के बीच जगजीवन बीहड़ के उस रास्ते पर निकल गया जिससे पुलिस अनजान थी.
लेकिन होनी को ये मंजूर नहीं था, और बरसों से संभाले हुए बीहड़ ने भी इस बार मुंह फेर लिया, और आखिर में जगजीवन परिहार का सामना पुलिस से हो ही गया. फिर क्या था एक के बाद एक कई गोलियों ने जगजीवन के सीने को छन्नी कर दिया, और उसके सीने पर पड़ रही हर एक गोली जगजीवन परिहार को वो होली का मंजर याद दिला रही थी…जिस दिन बेगुनाओं का मारा गया था…
आखिरकार जगजीवन परिहार मारा गया…और उसकी मौत के साथ ही चंबल के बीहड़ में उसके खौफ का भी अंत हो गया. हालांकि इस मुठभेड़ में कुछ पुलिसकर्मी भी शहीद हो गया…लेकिन जगजीवन के इस खौफ के अंत के बाद चंबल ही नहीं आसपास के गांव के लोगों ने भी राहत की सांस ली.