भारत–अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर वार्ता
india us trade deal: संघर्ष की शुरुआत
india us trade deal : इस साल फरवरी में भारत–अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर वार्ता शुरू हुई थी। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने GM मक्का और सोयाबीन जैसे कृषि उत्पादों पर इम्पोर्ट ड्यूटी घटाए ताकि अमेरिकी किसान सस्ते दाम पर भारतीय बाजारों में अपने उत्पाद बेच सकें। लेकिन भारत ने साफ इनकार किया—क्योंकि इससे भारतीय किसानों को प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ेगी।
वार्ता की 9 जुलाई 2025 की डेडलाइन नजदीक है, लेकिन यह समझौता अभी तक टल गया है।
भारत और अमेरिका के बीच क्या चर्चा हो रही थी?
- अमेरिका चाहता है कि भारत GM फसलों (मक्का, सोयाबीन) और डेयरी पर आयात शुल्क कम करे। साथ ही, मेडिकल डिवाइसेज, ऑटोमोबाइल, और व्हिस्की पर टैरिफ कम करने की भी मांग रखी गई है।
- भारत चाहता है कि अमेरिका उसके टेक्सटाइल, चमड़ा, दवाइयां, और ऑटो पार्ट्स पर शुल्क पूरी तरह से हटा दे या न्यूनतम 10% बनाए।
भारत के लिए इसमें क्या दांव लगा है?
- भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा छोटे और सीमांत किसानों पर निर्भर है। GM मक्का और सोयाबीन की सस्ती कीमतों से उनकी फसल की मांग पर असर पड़ेगा।
- यदि समझौता न हुआ, तो अमेरिका द्वारा भारत को 26% शुल्क लागू किए जा सकते हैं। इससे टेक्सटाइल, दवाइयों और ऑटो पार्ट्स जैसे उद्योगों का निर्यात प्रभावित होगा।
अभी तक बातचीत की स्थिति
- जून 2025 में दिल्ली में हुई बैठक में कुछ प्रगति हुई—डिजिटल ट्रेड, कस्टम सुविधा जैसे विषयों पर सहमति बनी।
- लेकिन GM कृषि और डेयरी पर रुकावट बनी हुई है। भारत ने स्पष्ट किया कि बिना किसानों के नुकसान के यह डील नहीं होगी।
डेडलाइन से पहले क्या विकल्प बचते हैं?
- तीन-चरणीय डील: पहला चरण जुलाई तक, दूसरा सितंबर-नवंबर तक, और तीसरा अगले साल पूरा।
- India भी WTO में अमेरिका को जवाब दे सकता है, खासकर उसकी स्टील और एल्युमिनियम टैरिफ नीति के खिलाफ।
- बगैर डील के, दोनों देशों में व्यापार तनाव बढ़ सकता है—जिसका असर व्यापक स्तर पर महसूस होगा।
किसानों पर असर
- GM फसलों से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे भारतीय किसान कीमतों में पीछे रह जाएंगे।
- खरीफ की फसलों जैसे मक्का और सोयाबीन की मांग घट सकती है, किसानों की आमदनी पर सीधा असर होगा।
- इस स्थिति से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मंदी आ सकती है और आर्थिक असंतुलन बढ़ सकता है।
उद्योग और निवेशकों की क्या राय है?
- टेक्सटाइल और ऑटो सेक्टर इस डील के सकारात्मक परिणाम की उम्मीद कर रहे हैं।
- यदि डील होती है, तो विदेशी निवेश बढ़ेगा, अर्थव्यवस्था को मजबूती हासिल होगी।
- लेकिन डील न होने पर दोनों देशों द्वारा उन पर शुल्कों की टकराव से निवेशकों की आशंका बढ़ जाएगी।
बेहतर विकल्प क्या हो सकते हैं?
- न्यूनतम 10% बेसलाइन टैरिफ: इस पर सहमति बन सकती है, जिससे दोनों देशों के प्रोडक्ट्स प्रतिस्पर्धा में टिक सकते हैं।
- भारत अपनी GM फसलों को छोटे-छोटे पैमानों या सीमित ड्यूटी के साथ खोल सकता है, बशर्ते डेयरी और अन्य उत्पाद पर अमेरिका भी अपनी मांगों में कमी लाए।
सबसे बड़ा सवाल – डील न होने पर क्या होगा?
- अमेरिका द्वारा भारत को 26% शुल्क लागू हो सकता है।
- भारत बदले में अमेरिकी आयात पर प्रतिबंध लगा सकता है—इससे व्यापार तनाव निर्मित हो सकता है।
- वैश्विक उद्धोग जगत पर इसका असर होगा, निवेशकों की धारणा प्रभावित होगी।
यह समझौता केवल एक व्यापारिक मसला नहीं—बल्कि भारत की कृषि, उद्योग और विकास रणनीति से जुड़ा है। 9 जुलाई से पहले इसका रास्ता साफ नहीं दिख रहा। लेकिन डील बनने पर किसानों के हितों, विनिर्माण क्षमता, और वैश्विक स्तर पर निवेश आकर्षण को बढ़ावा मिल सकता है। अगर डील नहीं हुई, तो इससे ट्रेड वॉर, महंगाई, और आर्थिक अस्थिरता का खतरा बन सकता है।
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