तौरा गांव में अवैध खनन का खेल
स्थानीय निवासी राम मोहन ने बताया कि उन्होंने और अन्य ग्रामीणों ने इस अवैध खनन की जानकारी कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को फोन के माध्यम से दी। इसके बावजूद, अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन की चुप्पी कहीं न कहीं खनन माफियाओं को संरक्षण दे रही है। यह स्थिति न केवल स्थानीय लोगों के लिए चिंताजनक है, बल्कि पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए भी बड़ा खतरा पैदा कर रही है।

Illegal Soil Mining: जल संरक्षण पर खतरा
तालाबों से हो रहा यह अवैध खनन केवल प्राकृतिक संसाधनों की क्षति तक सीमित नहीं है। यह पर्यावरणीय संतुलन और जल संरक्षण के लिए भी गंभीर खतरा बन रहा है। तालाब गांवों में जल संग्रहण का प्रमुख स्रोत होते हैं, और इनका अनियंत्रित दोहन भविष्य में जल संकट को और गहरा सकता है। इसके अलावा, जेसीबी जैसी भारी मशीनों का उपयोग मिट्टी की संरचना को नुकसान पहुंचाता है, जिससे मृदा अपरदन की समस्या बढ़ सकती है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर यह सिलसिला नहीं रुका, तो क्षेत्र की पारिस्थितिकी को अपूरणीय क्षति हो सकती है।
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नियमों की अनदेखी
उत्तर प्रदेश सरकार के नियमों के अनुसार, 100 घन मीटर तक मिट्टी खनन के लिए ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य है, जबकि इससे अधिक मात्रा में खनन के लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेनी होती है। साथ ही, किसी भी स्थिति में जेसीबी जैसी भारी मशीनों का उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित है। तौरा गांव में हो रहा खनन इन सभी नियमों का खुला उल्लंघन है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन ने शीघ्र कार्रवाई नहीं की, तो वे इस मुद्दे को लेकर धरना-प्रदर्शन करेंगे और शासन-प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे।