
सूर्यवंशी राजा मांधाता ने किया था ये व्रत
Devshayani Ekadashi : आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सबसे महत्वपूर्ण एकादशी को देवशयनी की एकादशी कहा जाता है। चातुर्मास की शुरुआत भी इसी दिन से होती है। इस एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी या हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि देवशयनी की एकादशी का व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है। दर्द दूर हो जाता है। मृत्यु के बाद, स्वर्ग में एक जगह है।
Devshayani Ekadashi की पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें, फिर स्नान करें। पूजा स्थल पर सोने, चांदी, तांबे या पीतल की भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और भगवान की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र अर्पित करें। व्रत की कथा सुनो और फिर आरती करो। फिर प्रसाद बांटने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
मान्यताओं के अनुसार देवशयनी की एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा में जाते हैं। पुराणों के अनुसार राजा बलि की दया और दान से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने पाताल लोक जाने की बलि की विनती स्वीकार कर ली।
विष्णुजी ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक प्रति वर्ष पाताल लोक में रहेंगे। इसके बाद विष्णुजी अपनी इच्छानुसार बलि को वरदान देकर पाताल लोक गए। इस अवधि में भगवान शिव ही सृष्टि के निदेशक होते हैं इसलिए चातुर्मास के दौरान भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा की जाती है।
एकादशी व्रत की कथा का सार
सूर्य वंश में मांधाता नामक चक्रवर्ती राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और भयंकर सूखा पड़ा। तब राजा उपाय की तलाश में अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि ने राजा से आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने को कहा।
ऋषि के वचनों को सुनकर राजा ने विधिवत एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से बारिश हुई और लोगों को पुनः सुख-समृद्धि की प्राप्ति हुई। इसलिए इस मास का एकादशी व्रत सभी मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस संसार में आनंद का दाता है और परलोक में मुक्ति का दाता है।
Devshayani Ekadashi
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