cji br gavai judicial independence collegium criticism 2025 : CJI BR गवई ने अपने बयान से यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता उनके लिए सर्वोपरि है। उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना को स्वीकारते हुए, इसके सुधार की आवश्यकता पर भी बल दिया। उनके विचार न्यायपालिका के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर जोर: CJI BR गवई ने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना की जा सकती है, लेकिन न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं होना चाहिए।
- इतिहास में सरकार की दखलंदाजी: उन्होंने बताया कि 1964 और 1977 में सरकार ने सीनियर जजों को नजरअंदाज कर नए मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए।
- कॉलेजियम प्रणाली की स्थापना: 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और चार सीनियर जज मिलकर जजों की नियुक्ति करते हैं।
- NJAC का विरोध: 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (NJAC) को असंवैधानिक करार दिया, क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करता था।
- रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद या चुनाव पर सवाल: CJI गवई ने रिटायरमेंट के बाद जजों द्वारा सरकारी पद स्वीकार करने या चुनाव लड़ने को नैतिक चिंता का विषय बताया, जिससे जनता में यह संदेश जा सकता है कि फैसले भविष्य की पद-लाभ की उम्मीद में दिए गए थे।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) BR गवई ने हाल ही में लंदन में आयोजित UK सुप्रीम कोर्ट के राउंड-टेबल में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और कॉलेजियम प्रणाली पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता, भले ही कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना की जाए।
cji br gavai judicial independence collegium criticism 2025
CJI गवई ने इतिहास का हवाला देते हुए बताया कि 1964 और 1977 में सरकार ने सीनियर जजों को नजरअंदाज कर नए मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठे। इसी संदर्भ में 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और चार सीनियर जज मिलकर जजों की नियुक्ति करते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (NJAC) को असंवैधानिक करार दिया, क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करता था।
रिटायरमेंट के बाद जजों द्वारा सरकारी पद स्वीकार करने या चुनाव लड़ने पर CJI गवई ने चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसे नैतिक चिंता का विषय बताया, जिससे जनता में यह संदेश जा सकता है कि फैसले भविष्य की पद-लाभ की उम्मीद में दिए गए थे।
CJI गवई के इन बयानों से यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनाए रखना उनके लिए सर्वोपरि है।
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