Char Dham Yatra: लाखों भक्तों का इंतजार आखिरकार खत्म हो गया है। चार धाम यात्रा की शुरुआत हो गई है। हिंदू धर्म में इस यात्रा का काफी ज्यादा महत्व है। चारों धामों के कपाट समय-समय पर खुलते और बंद होते हैं। हर साल वसंत पंचमी के दिन चारों धामों की यात्रा के कपाट खुलने की घोषणा की जाती है। बड़ी संख्या में भक्त मन में अपार श्रद्धा लिए अपने इष्ट देव के दर्शन को पहुंचते हैं। भक्त सबसे पहले बद्रीनाथ-केदारनाथ धाम जाते हैं, और फिर बाकी धामों की यात्रा करते हैं। इस स्टोरी में केदारनाथ-बदरीनाथ से जुड़े उन दिलचस्प फैक्ट्स के बारें में बताएंगे, जिनसे अब तक आप अनजान हैं, लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि चार धाम यात्रा में कौन-कौन से तीर्थस्थल आते हैं।
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छोटी चार धाम यात्रा
Char Dham Yatra: शुरुआत उत्तराखंड के गंगोत्री-यमुनोत्री नाम के स्थान से होती है। जहां मां गंगा-यमुना मूर्त रूप में विराजमान हैं। इस यात्रा में केदारनाथ-बद्रीनाथ का दर्शन करते हैं। इसे छोटी चार धाम यात्रा भी कहते हैं.
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Char Dham Yatra: जगन्नाथपुरी
दूसरा धाम है जगन्नाथपुरी…जो ओडिशा के पुरी में समुद्र किनारे बसी है. यह धाम भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है. इसमें भगवान कृष्ण बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं. हर साल आषाण माह में यहां जगन्नाथपुरी यात्रा निकाली जाती है, जो दुनियाभर में प्रसिद्ध है.
रामेश्वरम
Char Dham Yatra: तीसरा धाम है रामेश्वरम, जो तमिलनाडु में है. यह भी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. मान्यता है कि वनवास के दिनों में भगवान श्रीराम ने इसकी स्थापना की थी. राम के ईश्वर से नाम पर इस जगह का नाम रामेश्वरम पड़ा.
द्वारिका
Char Dham Yatra: चौथा और आखिरी धाम है द्वारिका, जो गुजरात में समुद्र किनारे है. द्वारिका को भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था. माना जाता है कि भगवान कृष्ण के बाद द्वारिका नगरी समुद्र में समा गई थी लेकिन वर्तमान में उसके दो अवशेष हैं, बेट द्वारिका और गोमती द्वारिका.
Char Dham Yatra: रिकॉर्डतोड़ हुए रजिस्ट्रेशन
अब बात चार धाम यात्रा में हिमालय में बसे बाबा केदारनाथ-बदरीनाथ धाम की. जहां इस बार रिकॉर्डतोड़ रजिस्ट्रेशन हुए हैं. उत्तराखंड पर्यटन विभाग के अनुसार, केदारनाथ यात्रा के लिए इस बार 7 लाख 41 हजार से ज्यादा, जबकि बद्रीनाथ के लिए 7 लाख 38 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने रजिस्ट्रेशन करवाया है। वहीं, गंगोत्री के लिए 38 लाख और यमुनोत्री के लिए 33 लाख से ज्यादा रजिस्ट्रेशन आए हैं.
केदारनाथ के रहस्य
Char Dham Yatra: इनमें सबसे दूरी पर बसे केदारनाथ की ऊंचाई समुद्रतल से 3,584 मीटर है, जो रुद्रप्रयाग जिले में हैं. यह धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग और पंच केदार में से एक है.
Char Dham Yatra: इसका इतिहास भगवान विष्णु के नर-नारायण अवतार और पांडवों से जुड़ा है. माना जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं-9वीं शताब्दी में इस धाम का जीर्णोद्धार करवाया था. हिमालय की गोद में बसे होने की वजह से सर्दियों के मौसम में करीब 6 महीने तक मंदिर बंद रहता है. गर्मी का मौसम आने पर इसे खोला जाता है. इससे जुड़ी कई मान्यताएं हैं…
1. शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता के अनुसार, बदरीवन में भगवान श्रीहरि विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर-नारायण प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की आराधना करते थे. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और नर-नारायण से वरदान मांगने को कहा। नर-नारायण ने प्रार्थना करते हुए शिवजी को हमेशा के लिए यहीं बसने को कहा, ताकि भक्त आसानी से उनके दर्शन कर सकें. भगवान शिव ने उनकी बात मान ली, जिसके बाद यह जगह केदार क्षेत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ।
2. एक मान्यता और है कि महाभारत के समय यानी द्वापर युग में शिवजी ने पांडवों को बैल रूप में यहीं दर्शन दिए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां पांडवों की तपस्या के बाद जब शिवजी ने उन्हें बैल रूप में दर्शन दिए, तब पांडवों ने उनसे यहीं बस जाने की प्रार्थना की। भोलेनाथ बैल रूप में वहीं बैठ गए और शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। यही कारण है कि यहां शिवलिंग बैल के पीठ यानी तिकोने आकार में है।
3. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, केदारनाथ धाम में स्वयंभू शिवलिंग यानी स्वयं से प्रकट शिवलिंग हैं। केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडव राजा जनमेजय ने करवाया था। इसके बाद 400 साल तक मंदिर बर्फ में दबा रहा। बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं-9वीं शताब्दी इस मंदिर का जिर्णोद्धार करवाया।
Char Dham Yatra: 4. केदारनाथ का नाम पढ़ने के पीछे एक पौराणिक कथा ये भी है कि असुरों से देवताओं को बचाने के लिए भगवान शिव ने ‘कोडारम’ नाम के बैल का रूप धारण किया था. इसी कोडारम बैल के पर केदारनाथ नाम पड़ा.
5. केदारनाथ मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है. इसके मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों तरफ परिक्रमा मार्ग है। मंदिर के बाहर परिसर में नंदी विराजित हैं। यहां प्राचीन विधि से ही शिव जी की पूजा की जाती है.
6. मान्यता है कि केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा भैरों जी करते हैं। उनका मंदिर भी केदारनाथ धाम के एकदम पास है। वहीं यहां के क्षेत्रपाल हैं। यही कारण है कि केदारनाथ मंदिर जाने वाले भैरो बाबा के दर्शन जरूर करते हैं.
7. कहा जाता है कि जब केदारनाथ मंदिर 6 महीने के लिए बंद होता है, तब पुजारी वहां एक दीप प्रज्वलित करके धाम के कपाट बंद करते हैं, जब 6 महीने बाद कपाट खुलता है तो दीप जलता हुआ मिलता है।
“जो आए बदरी वो ना आए ओदरी”
Char Dham Yatra: बद्रीनाथ अलकनंदा नदी के किनारे है। यह मंदिर सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु का है. आदिकाल से ही इस जगह को पृथ्वी का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. इस जगह को भगवान विष्णु का दूसरा निवास स्थान माना गया है। इसे दूसरा बैकुंठ भी कहते हैं। बद्रीनाथ को लेकर एक कहावत भी काफी प्रचलित है. ‘जो आए बदरी, वो न आए ओदरी’…इसका मतलब है कि एक बार बद्रीनाथ जी के दर्शन के बाद बार-बार उदर यानी पेट में नहीं आना पड़ता है. मतलब जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाना, मोक्ष को प्राप्त हो जाना.
6 महीने बंद रहता है कपाट
Char Dham Yatra: दिवाली के दूसरे दिन यानी पड़वा पर कपाट 6 महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं. मान्यता है कि जब कपाट बंद रहता है, तब यहां देवता पूजा करने आते हैं। मान्यता यह भी है सतयुग तक भगवान विष्णु का यहां साक्षात दर्शन होता था। त्रेतायुग में केवल देवताओं और साधुओं को ही भगवान दर्शन देते थे।
मई में नहीं होगी बुकिंग
Char Dham Yatra: अगर आप भी इस यात्रा में शामिल होना चाहते हैं तो उत्तराखंड पर्यटन की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। वैसे बता दें कि मई महीने की बुकिंग फुल हो चुकी है, आगे की बुकिंग चल रही है।