Chandra shekhar azad: अंग्रेज जिसके नाम से कांपते थे और पूरे देश में जिसे आजाद के नाम से पुकारा जाता था. ऐसे क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की आज जयंती है. बहुत कम लोग जानते होंगे कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का बुंदेलखंड से गहरा नाता रहा है. वैसे तो आजाद का जन्म बुंदेलखंड से काफी दूर झाबुआ जिले के भांभरा में हुआ था. लेकिन बुंदेलखंड के कस्बों से उनकी यादें आज ताजा है.
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सागर में आजाद ने काटी फरारी
चंद्रशेखर आजाद ने सागर के रहली कस्बे में एक क्रांतिकारी के घर फरारी काटी थी और उनकी शहादत के बाद उनकी मां उन्हीं क्रांतिकारी के घर पर रही थीं. यह भी कहा जाता है कि जिले के बंडा कस्बे में आजाद ने एक व्यापारी का मुनीम बनकर फरारी काटी थी. बीना में तो चंद्रशेखर आजाद की घड़ी और उनकी मां का श्रृंगार दान भी रखा हुआ है.
बुंदेलखंड से Chandra Shekhar Azad का गहरा नाता
क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने जब अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था, तो अंग्रेज आजाद को पकड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे. ऐसे में अंग्रेजों से बचने के लिए आजाद ने बुंदेलखंड का रुख किया था. बुंदेलखंड के क्रांतिकारियों ने आजाद को अंग्रेजों की नजर से बचाने में भरपूर मदद की थी. कहा जाता है कि अंग्रेजों से बचते-बचते चंद्रशेखर आजाद सागर जिले के रहली कस्बे में पहुंचे. यहां क्रांतिकारी गोपाल कृष्ण आजाद और सदाशिवराव मलकापुरकर ने उनकी मदद की थी. यहां पर आजाद ने फरारी का लंबा वक्त गुजारा था. वहीं उनकी शहादत के बाद उनकी मां जगरानी देवी मलकापुरकर परिवार के साथ रही थीं. इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि जिले के बंडा कस्बे के व्यापारी लोकरस परिवार ने आजाद को शरण दी थी और आजाद वेष बदलकर उनके मुनीम के रूप में बंडा में रहे थे.
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बीना में आजाद की यादें
चंद्रशेखर आजाद के बुंदेलखंड से जुड़ी यादों को सहेजने का काम बीना में श्रीराम शर्मा द्वारा किया गया है. कहा जाता है कि श्री राम शर्मा ने अपना जीवन क्रांतिकारियों की यादें सहेजने में खर्च किया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम की छोटी-मोटी जानकारी से लेकर हर जानकारी उनके पास है. अथक पथ संग्रहालय नाम से श्री राम शर्मा ने एक संग्रहालय भी बनाया है, जिसमें चंद्रशेखर आजाद की घड़ी आखिरी निशानी के रूप में रखी हुई है, जिसे देखने के लिए आज भी लोग पहुंचते हैं. इसके अलावा आजाद की मां जगरानी देवी की शादी के वक्त उन्हें पीतल की श्रृंगार पेटी भेंट की गई थी. वह भी इसी संग्रहालय में रखी है.
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होशंगाबाद से आए थे आजाद के पूर्वज
श्रीराम शर्मा बताते हैं कि होशंगाबाद के बाबई में चंद्रशेखर आजाद के परिवार के महेंद्र तिवारी रहते हैं, जिन्होंने क्रांतिकारियों के लिए किए गए मेरे काम से प्रभावित होकर अपने पूर्वज चंद्रशेखर आजाद की घड़ी और उनकी मां जगरानी देवी का श्रृंगार दान संग्रहालय में रखने के लिए भेंट किया था. यह श्रृंगार पेटी जगरानी देवी को उनकी शादी के वक्त भेंट की गई थी जिसमें वह अपने जेवर और श्रृंगार का सामान रखती थीं.
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को झाबुआ जिले के भाबरा में हुआ था. वह एक ऐसे क्रांतिकारी थे कि अंग्रेजी हुकूमत उनको जिंदा पकड़ने के लिए परेशान थी लेकिन चंद्रशेखर आजाद ने तय किया था कि वह जिंदा अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे. कई इलाकों में फरारी काटने के बाद 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों ने आखिरकार आजाद को घेर लिया. लेकिन आजाद ने अपनी पिस्तौल में बची आखिरी गोली को अपनी ही कनपटी पर रखकर चला दिया और वह हमेशा के लिए आजाद हो गए.