भोपाल इज़तिमा का इतिहास: जब भी भोपाल शहर का ज़िक्र हो और यहाँ हर साल होने वाले विश्व के सबसे बड़े इज़तिमा की बात ना हो यह संभव नहीं, इज़तिमा भोपाल की इस्लामिक सांस्कृतिक धरोहर का अहम् हिस्सा है जिसमे ना सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोग बल्कि सभी जाति और धर्म के लोग एकजुट होकर इसे साल दर साल एक साथ मिलकर सफल बनाने का प्रयास करते हैं. इस साल इसका आयोजन 14-17 नवंबर को होना तय किया है जिसकी तैयारी 300 एकड़ मे की जा रही है जिसमे करीब 15 लाख लोगों के आने का अनुमान लगाया जा रहा है.
भारत के अलग अलग राज्यों के अलावा…
- सऊदी अरब,
- श्रीलंका,
- नेपाल,
- इंडोनेशिया,
- अफ़्रीकी,
देशों से प्रतिनिधि आने वाले हैं. यह आयोजन दुनियाभर के मुसलमानों को एक मंच पर लाता है और इसे तब्लीगी इज़तिमा भी कहते हैं.
इज़तिमा का इतिहास
वैसे तो इज़तिमा कब से शुरू हुआ इसकी कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है पर कुछ मुस्लिम इतिहासकार मानते हैं की इसकी शुरुआत 1949 में मस्जिद शकूर खान, कोतवाली रोड, इब्राहिमपुरा से 14 लोगों द्वारा की गई थी जिसकी नींव मौलाना मिस्किन साहब ने रखी थी, समय के साथ साथ इसकी लोकप्रियता और बढ़ती भीड़ को देखते हुऐ 1971 मे इसका आयोजन एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मस्जिद मे किया जाने लगा लेकिन साल दर साल बढ़ती भीड़ के मद्देनज़र इसका आयोजन इंटखेड़ी मे होने लगा.
इज़तिमा का मकसद
इज़तिमा मे देश विदेश से से जमातें आती हैं और इस दौरान इस्लाम के अनुयायी धर्म की शिक्षा हासिल और सिखाने आते हैं. भोपाल का इज़तिमा केवल एक धार्मिक जमावड़ा नहीं, बल्कि यह दुनिया मे अमन, भाईचारे और इंसानियत का संदेश देने वाला आयोजन है.
क्यों ख़ास है भोपाल का इज़तिमा?
भारत मे केवल भोपाल ही एकमात्र शहर है जहाँ इज़तिमा का आयोजन किया जाता है इसके अलावा पूरे विश्व में सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश मे इज़तिमा का आयोजन होता है. भोपाल का इज़तिमा पूरे विश्व मे अपनी विशालता और अनुशासन के लिये जाना जाता है. इस आयोजन मे पूरे विश्व से लाखों लोग जुटते हैं लेकिन इतनी बड़ी भीड़ के बावजूद यहाँ व्यवस्था का अद्धभुत उदाहरण देखने को मिलता है. यहाँ ना केवल धार्मिक प्रवचन होते हैं साथ ही जीवन मे सादगी, इंसानियत और भाईचारे का संदेश भी दिया जाता है.
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