ANUPAM KHER: हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर इन दिनों अपनी नई फिल्म विजय 69 को लेकर चर्चा में हैं। इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया है कि सपने देखने की कोई उम्र नहीं होती, बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए जज्बे और मेहनत की जरूरत होती है। फिल्म विजय 69 में अनुपम खेर ने 69 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति ‘मैथ्यू’ का किरदार निभाया है, जो कभी हार नहीं मानता और अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है। यह फिल्म उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपने सपनों को हासिल करने की प्रेरणा देती है।
फिल्म का संदेश: कभी न हार मानने की प्रेरणा
क्या रिटायरमेंट के बाद बुजुर्गों की जिंदगी पर एक फुल स्टॉप लग जाता है? फिल्म में अनुपम खेर के कुछ डायलॉग दिल को छूने वाले हैं, जैसे, “मैं 69 साल का हूं, तो क्या सपने देखना बंद कर दूं? 69 का हूं, तो सुबह अखबार पढ़ूं, सिर्फ वॉक पे जाऊं, दवाइयां खाकर सो जाऊं और एक दिन मर जाऊं?” ये डायलॉग न केवल बुजुर्गों की सोच को चुनौती देते हैं, बल्कि दर्शकों को यह भी सिखाते हैं कि उम्र महज एक संख्या है और अगर इंसान में हौसला हो, तो वो किसी भी उम्र में अपने सपने पूरे कर सकता है।
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अनुपम खेर की मेहनत और संघर्ष
अनुपम खेर की जिंदगी अपने आप में संघर्ष और मेहनत की मिसाल है। फिल्म के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है और इस फिल्म के जरिए उन्होंने यह साबित किया है कि कभी भी किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उम्र और परिस्थितियां बाधा नहीं बन सकतीं। उनके अभिनय को देखकर हर कोई उनके जज्बे को सलाम कर रहा है।
अनुपम खेर की यात्रा: संघर्ष से सफलता तक
उनका जन्म 7 मार्च 1955 को शिमला, हिमाचल प्रदेश में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। उनके पिता पुष्कर नाथ एक क्लर्क थे। शिमला में अपनी शुरुआती पढ़ाई के बाद अनुपम ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) से अभिनय की शिक्षा ली। वह एक्टर बनने का सपना लेकर मुंबई पहुंचे, लेकिन उनका सफर आसान नहीं था। मुंबई में वह एक छोटे से कमरे में चार लोगों के साथ रहते थे। अनुपम खेर ने अपनी संघर्ष भरी शुरुआत को याद करते हुए बताया कि उन्होंने अपनी मां के मंदिर से 100 रुपये चुराए और एक्टिंग की पढ़ाई के लिए पंजाब का रुख किया। इसके बाद उन्होंने मुंबई में भी कई कठिन रातें रेलवे स्टेशन पर गुजारी।
निष्कर्ष
अनुपम खेर का जीवन और उनका अभिनय यह सिखाता है कि किसी भी उम्र में अपनी मेहनत और हौसले से इंसान अपने सपनों को हासिल कर सकता है। फिल्म विजय 69 इस विचार को पूरी तरह से दर्शाती है और बुजुर्गों के लिए एक प्रेरणा बनकर सामने आती है।
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