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परंपरा है या कोई डर जानेंगे हम
AJab-Gajab: सनातन धर्म में विवाह संस्कार का बड़ा महत्व है.विवाह के बाद लड़की दूसरे घर में जाती है और वहां अपनी जिम्मेदारियां निभाती हैं. हिंदू धर्म में शादी के समय 7 फेरों के साथ सात बचन वर वधु द्वारा लिए जाते है.और इसके बाद सबसे बड़ी रस्म होती है मांग भराई की.जिसमे दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है.और जिसके बाद महिला पूरे सोलह श्रंगार के साथ अपनी ससुराल पहुंचती है और फिर हर दिन सज संवर मांग में सिंदूर भरती है.लेकिन हम आपको आज एक ऐसे गांव की कहानी बताने जा रहे है.जहां महिलाएं शादी के बाद विधाव की तरह जीवन जीती है.
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AJab-Gajab: इस गांव की अनोखी मान्यता
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर की दूर नगरी इलाके में सदबहारा गांव है. गांव में तकरीबन 40 आदिवासी परिवार रहते हैं और यह गांव अपनी एक अनोखी परंपरा के चलते पूरे देश में जाना जाता है. यहां महिलाओं को शृंगार करने की मनाही है. ऐसी मान्यता है कि अगर महिलाएं ऐसा करेंगी, तो ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रहेंगी या फिर उसे कोई न कोई बीमारी जरूर हो जाएगी.
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AJab-Gajab: परंपरा या डर?
ये एक ऐसा गांव है, जहां की औरत न तो अपनी मांग सजाती है और न ही श्रृंगार करती है यहा तक की इनको खाट पर सोने या बैठने की मनाही है.यहां की महिलाएं जमीन पर ही सोती हैं… इस गांव की महिलाएं अपने मांग में सिंदूर तक भरने से खौफ खाती हैं. ये परंपरा गांव में सदियों पहले एक देवी के प्रकोप के कारण बनाई गई थी. ग्रामीणों का मानना है कि अगर कोई भी गांव में इसे तोड़ने की कोशिश करेगा तो देवी नाराज हो जाएगी.और गांव पर आफत आ जाएगी.यही वजह है कि कारण ये परंपरा आज तक बदस्तूर जारी है.
AJab-Gajab: परंपरा के पिछे की कहानी
इसके पीछे एक पुरानी कहानी छुपी है. गांव के बुजुर्गों का कहना है.गांव में ही एक पहाड़ी है, जहां कारीपठ देवी रहती है.देवी महिलाओं के श्रंगार करने से नाराज हो जाती हैं. और गांव पर संकट आ जाता है.गांव प्रमुख की मानें तो 1960 में एक बार गांव के लोगों ने इस परंपरा को तोड़ा था, जिसके बाद गांव की महिलाओं को कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया और मौतें भी होने लगी. यहां तक कि जानवर मरने लगे और बच्चे बीमार होने लगे. सबको यही लगा कि ये देवी का प्रकोप है और परंपरा टूटने के कारण ऐसा हुआ है. फिर क्या था…इसके बाद किसी ने भी इस परंपरा तोड़ने की जुर्रत नहीं की.
AJab-Gajab:देवी के डर से नहीं करती श्रंगार
गांव की महिलाएं भी इस डर के पीछे की कहानी बताती है. गांव में कोई भी खुशी का पल जैसे दिवाली-दशहरा, तीज-त्यौहार हो या फिर शादी-ब्याह, लेकिन महिलाएं श्रृंगार नहीं करतीं. बिंदिया, पायल, लिपस्टिक तो दूर की बात है, यहां की महिलाएं मांग में सिंदूर तक नहीं भरती हैं. इसके पीछे सिर्फ डर है तो बस देवी मां के प्रकोप का. जिसे गांव की कोई भी महिला आज तक तोड़ने की जुर्रत नहीं की है. यहां तक कि ये परंपरा इस गांव में आने वाले दूसरे गांवो के लोगों पर भी लागू हो जाता है. गांव में सभी लोग आज भी इस खौफ के साये में अपना जीवन बसर कर रहे हैं. हमेशा गांव वालों को डर बना रहता है कि परंपरा तोड़ने से गांव में अनहोनी हो सकती है.
AJab-Gajab: गांव वाले नहीं मानेत इसे अंधविश्वास
AJab-Gajab: भले ही आज जमाना चांद सितारे पर चला गया है लेकिन दुनिया में कई ऐसी रूढ़िवादी परंपराएं भी चली आ रही हैं. लोग खौफ के साये या मजबूरी के चलते उन परंपराओं को मानते आ रहे हैं. कुछ ऐसा ही इस गांव में देखने को मिला है.हालांकि कई समाजिक कार्यकर्ताओं ने यहां के लोगों को जाकर समझाया कि ये सब अधंविश्वास की बाते है लेकिन गांव वालों ने किसी की एक ना सुनी और इस परंपरा को सदियों से निभाते चले आ रहे है.