Abusive language by officer: हाल ही में जनजातीय विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी, कमिश्नर श्रीमन शुक्ला द्वारा एक महिला पत्रकार के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया। यह घटना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि लोकतंत्र और महिला सम्मान दोनों के लिए गंभीर चिंता का विषय भी है। पत्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाते हैं, जिनका कार्य समाज को सच्चाई से अवगत कराना होता है। ऐसे में यदि उन्हें ही अपमान का सामना करना पड़े, तो यह स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता पर हमला माना जाएगा।

Abusive language by officer: जो छापना है छापों में किसी से नहीं डरता-कमिश्नर
आपबीती…. बता दें की महिला पत्रकार ने जब जनहित से जुड़े कुछ सवालों को लेकर कमिश्नर के दफ्तर पहुंची, तो वह असहज हो गए और अपनी मर्यादा भूल गए। उन्होंने अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए महिला पत्रकार का अपमान किया।और कहा की जाकर मंत्री से बात करों हमारे पास इतना टाइम नहीं है मंत्रियों जैसा… और साथ ही कहा की जो टेलिकास्ट करना है करों… जो छापना है छापों में किसी से नहीं डरता… यह व्यवहार एक सरकारी अधिकारी के पद की गरिमा के बिल्कुल विपरीत है। किसी भी अधिकारी को यह अधिकार नहीं कि वह जनता या पत्रकारों के साथ असम्मानजनक व्यवहार करे, खासकर जब मामला एक महिला से जुड़ा हो।
Abusive language by officer: महाशय के ससुर ‘सरकार’ थे
कमिश्नर महोदय पूर्व मंत्री के रिश्तेदार बताए जाते हैं… क्या इनका व्यवहार इसी लिए ऐसा है… महाशय के ससुर ‘सरकार’ थे… यह घटना महिलाओं के प्रति समाज में व्याप्त लैंगिक असमानता के सोच को भी उजागर करती है। एक जिम्मेदार अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह न केवल संवेदनशील हो, बल्कि हर नागरिक के साथ मर्यादित व्यवहार करे।
ऐसा व्यवहार किसी महिला पत्रकार के साथ न हो
Abusive language by officer: आईएएस अधिकारी के मामले में भी जांच होनी चाहिए और संबंधित अधिकारी को भविष्य में ऐसा व्यवहार किसी महिला पत्रकार के साथ न हो। पत्रकार समाज के लिए काम करते हैं उनकी सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए सरकार और जिम्मेदारों को ध्यान रखना चाहिए।