उद्धव और राज ठाकरे की विजय: 20 साल बाद एक मंच पर आए ठाकरे बंधु
उद्धव और राज ठाकरे की विजय: अप्रैल 2025 में महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से 5वीं तक हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अनिवार्य करने का आदेश जारी किया था। यह आदेश सभी मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों पर लागू किया गया था। इस फैसले के खिलाफ राज्यभर में विरोध शुरू हो गया।
शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और MNS प्रमुख राज ठाकरे ने इस आदेश को “मराठी भाषा की अवहेलना” बताते हुए 5 जुलाई को संयुक्त रैली की घोषणा की थी। इसी बीच, सरकार ने 29 जून को दोनों आदेश वापस ले लिए। इसके बाद इसे विरोध की जीत बताते हुए ‘विजय रैली’ नाम दे दिया गया।
20 साल बाद उद्धव-राज एकसाथ
राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना छोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई थी। तब से दोनों नेताओं के बीच दूरी रही। लेकिन अब भाषाई अस्मिता के मुद्दे ने दोनों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया।
इस रैली को देखकर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2025 विधानसभा चुनाव से पहले ठाकरे परिवार के एक मंच पर आने के बड़े मायने हैं।
MNS कार्यकर्ताओं की हरकत ने बढ़ाया विवाद
30 जून को ठाणे में एक गुजराती दुकानदार को मराठी न बोलने पर MNS कार्यकर्ताओं ने थप्पड़ मार दिया। वीडियो वायरल होने के बाद सरकार और जनता की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं।
CM देवेंद्र फडणवीस ने साफ कहा कि “मराठी का सम्मान जरूरी है, लेकिन गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
भविष्य की भाषा नीति क्या होगी?
सरकार ने अब नया मार्गदर्शन जारी किया है:
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छात्र हिंदी के अलावा दूसरी भारतीय भाषाएं चुन सकते हैं
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एक क्लास में कम से कम 20 छात्र होने चाहिए उस भाषा के लिए
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ऑनलाइन माध्यम से भी पढ़ाई की व्यवस्था होगी
राजनीति या मराठी अस्मिता?
राज ठाकरे ने कहा –
“महाराष्ट्र को अपनी ताकत दिखानी होगी, यह सिर्फ हिंदी का विरोध नहीं है, बल्कि मराठी की अस्मिता की लड़ाई है।”
वहीं उद्धव बोले – “हम हिंदी के विरोधी नहीं हैं, लेकिन किसी भी भाषा को जबरन थोपना गलत है।”
हिंदी बनाम मराठी का यह विवाद केवल भाषा का नहीं, बल्कि राजनीतिक पहचान, सांस्कृतिक सम्मान और वोट बैंक का भी मुद्दा बन चुका है। ऐसे में ठाकरे बंधुओं की यह एकता आने वाले चुनावी समीकरणों को ज़रूर प्रभावित करेगी।
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